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तिलोयपण्णति में प्राप्त ऋषभदेव की कुछ तिथियाँ साढे ८ माहपूर्व का समय कार्तिक कृष्णा अमावस्या ( या चतुर्दशी का अंतिम पहर) बैठता है, जबकि ऋषभदेव का मोक्ष माघ कृष्णा चतुर्दशी को हुआ है। अतः उसके बाद तृतीय आरे के ३ वर्ष साढ़े पांच माह ही शेष रहते हैं, ३ वर्ष साढे ८ माह नहीं । यह तीन माह का अन्तर भगवान् ऋषभदेव के जीवन कालमें कुछ समस्याएं उत्पन्न करता है । यथा१ यदि माघकृष्णा चतुर्दशी को ही निर्वाण-तिथि स्वीकार की जाय तो ग्रन्थों
में जो तीसरे आरे के ३ वर्ष साढे ८ माह शेष रहने की बात कही गयी है वह प्रामाणिक नहीं ठहरती | क्योंकि श्रावण प्रतिपदा को चतुर्थकाल प्रारम्भ होने से इसमें ३ माह पड़ते हैं। तिलोयपण्णत्ति २ एवं अन्य ग्रन्थों में भगवान् ऋषभदेव की आयु ८४ लाख पूर्व कही गयी है, जो तीसरे आरे के ३ वर्ष शेष रहते कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी को पूर्ण हो जाती है । यदि उन्होंने माध कृष्णा चतुर्दशी को निर्वाण प्राप्त किया है तो उनकी आयु ८४ लाख पूर्व ३ माह होनी चाहिये, जबकि ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है। इसी तिलोयपण्णत्ति में कहा गया है कि भगवान महावीर चतुर्थकाल के ३ वर्ष साढे ८ माह शेष रहने पर मोक्ष गये थे। महावीर की निर्वाणतिथि कार्तिक कृष्णा ( चतुर्दशी ) अमावस्या है। उससे लेकर आषाढी पूर्णिमा तक साढे ८ माह का समय शेष रहता है और श्रावण प्रतिपदा से पंचमकाल प्रारम्भ हो जाता है । जब महावीर की निर्वाण-तिथि कार्तिक कृष्णा अमावास्या होने से चतुर्थकाल के ३ वर्ष साढे ८ माह पूरे होते हैं तो भगवान् ऋषभदेव की निर्वाण तिथि भी कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी या अमावस्या का उषाकाल) होनी चाहिये, माधकृष्णा चतुर्दशी नहीं । तभी तीसरे काल के ३ वर्ष साढे ८ माह की अवधि शेष रहने की बात प्रामाणित हो सकेगी।
४. एक प्रश्न यह भी उपस्थित होता है कि प्रायः सभी ग्रन्थों के आधार ___16. Seminar on Agama
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