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तिलोयपरणत्ति में प्राप्त ऋषभदेव की कुछ तिथियां
२३५ समय ८४ लाख पूर्व, तीन वर्ष साढे आठ माह बाकी थे। इनमें से किसे सही माना जाय ?
संभवतः गर्म-प्रवेश और जन्म के बीच की अवधि (लगभग ९ या साढ़े आठ माह की गणना छूट जाने के कारण ही भमवान ऋषभदेव की जन्म-तिथि और निर्वाण तिथि में भिन्नता की परम्परा विकसित हुई है । ८४ लाख पूर्व की आयु पूर्ण होने पर ऋषभ की निर्वाण-तिथि जो चैत्र कृष्णा नवमी होनी चाहिये थी वह ९ माह के बाद माधकृष्णा चतुर्दशी हो गयी है । वस्तुतः ऋषभदेव के जन्म के समय तीसरे आरे के ८४ लाख पूर्व एवं लगभग ३ वर्ष का समय ही शेष होना चाहिये । साढे ८ माह के समय में कहीं कोई भ्रमित परम्परा विकसित हो गयी प्रतीत होती है । यद्यपि यह सव धार्मिक एवं पौराणिक परम्परा की कालगणना का विषय है, फिर भी इसमें भी तो पूर्वापर सम्बन्ध बैठना ही चाहिये । कौन सी कड़ी कहाँ से छूटी है, उसी को खोजने का प्रयत्न होना चाहिये । जैन संघ की परम्परा के ऐतिहासिक सन्दर्भो के अतिरिक्त तिलोयपण्णत्ति में प्राप्त प्राचीन राजवंशों आदि से सम्बन्धित ऐतिहासिक सन्दर्भो के मुल्यांकन के लिये स्वतन्त्र अध्ययन की आवश्यकता है ।
टिप्पणी १. तिलोयपण्णत्ति, भाग १. डा. ए. एन. उपाध्ये, डा. हीरालाल जैन, १९४३,
सोलापुर, भाग १, १६५१. तिलोयपण्णत्ति, भाग २, - अनुवादिका-आर्यिका विशुद्धमति, १९८४, कोटा,
भाग २, १९८६, दि. जैन महासभा प्रकाशन । ३. तिलोयपण्यत्ति, भाग २. स. डा. हीरालाल जैन, भूमिका, पृ १५. ४. पणमह जिण वर व सह गणहरवसह तहेव गुणवसह । दठण परिसवसह जदिवसह धम्मसुत्तपाढए वसह ॥
- तिलोय. ९, गा. ७६. ५. तिलोयपण्णत्ति, चतुर्थ अधिकार, गाथा १५१७-१५२१.
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