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भगवती आराधना एव' प्रकीर्णकों में आराधना का स्वरूप
तप इन चार प्रकार की आराधनाओं के साथ साथ ५ मरण, १२ तप, संलेखना एवं श्रावक धर्म आदि का वर्णन किया गया है । चूंकि सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र व तप की आराधना से ही जीव मोक्ष प्राप्त कर सकता है इसलिए ग्रन्थकार ने प्रयम २४ गाथाओं में आराधना के भेद, स्वरूप व इन चारों के सम्बन्ध आदि का वर्णन ग्रन्थ में सबसे पहले किया है । प्रकीर्णक-साहित्य : ____ अर्धमागधी आगम साहित्य में प्रकीर्णकों की संख्या २० मानी गयी है। जिनमें आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, भक्तपरिज्ञा तथा मरणसमाधि नामक प्रकीर्णकों में भगवती आराधना की तरह ही आराधना के भेद, स्वरूप व संलेखना द्वारा मरण आदि का वर्णन किया गया है । चतुःशरण नामक प्रकीर्णक में इस संसारको अशान्ति एवं दुःख का प्रतीक मानते हुए अरहंत, सिद्ध, साधु
और सर्वज्ञ-प्ररूपित धर्म को शरणमात्र कहा गया है। तन्दुलवैचारिक नामक . प्रकीर्णक में मुख्य रूप से गर्भविषयक वर्ण न है । जीवनभर में जो श्रेष्ठ व 'कनिष्ठ कर्म किए गये हैं उनका लेखा लगाकर अन्तिम समय में समस्त दुष्प्रवृत्तियों का परित्याग कर, संयम धारणकर संस्तारक पर आसीन होकर पंडित -मरण को प्राप्त करने वाला श्रमण मुक्ति का वरण करता है । बृहत्कल्प व व्यवहार सूत्रों के आधार पर लिखा गया गच्छाचार प्रकीर्णक श्रमण-श्रमणियों के आचार-सिद्धान्त का निरूपण करता है। गणिविद्या नामक प्रकीर्णक में ज्योतिष सम्बन्धी व देवेन्द्रस्तव में ३२ देवेन्द्रों का विस्तारपूर्वक वर्णन पाया जाता है। आराधना का स्वरूप :
आराधना के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए भगवती आराधना में कहा गया है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र व सम्यक् तप के उद्योतन, उद्यमन, निर्वहन, साधन और निस्तरण को आराधना कहते हैं । अर्थात् सम्यग्दर्शन,
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