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डॉ. प्रेमसुनन जैन
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पर अक्षय आहार दान दिया । जिससे वह दिन अक्षय तृतीया के नामसे सार्थक हो गया इस सन्दर्भ में वैशाख शुक्ला तृतीया का उल्लेख नहीं है । डॉ. भायाणी ने सूचित किया है कि महाकवि स्वयम्भूने भी अक्षय तृतीया का उल्लेख अपने ग्रन्थों में किया है । किन्तु उसमें भी वैशाख शुक्ला तृतीया का उल्लेख नहीं है |
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श्वेताम्बर परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में भी इस पारणा - तिथि का उल्लेख नहीं है । कल्पसूत्र एवं जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में प्रथम पारणे का ही उल्लेख नहीं है । समत्रार्याग सूत्र एवं वसुदेवहिण्डी में सम्वत्सर - उपवास के बाद पारणे का उल्लेख है, किन्तु पारणा - तिथि का नहीं । त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित्र एव खरतगच्छ बृहद् गुर्वावली में स्पष्ट उल्लेख प्राप्त है कि भगवान ऋषभदेव का प्रथम आहार (पारणा ) वैशाख शुक्ला तृतीया को हुआ । इससे स्पष्ट है कि १२वीं शताब्दी के पूर्व ऋषभदेव की पारणा - तिथि उनकी दीक्षा तिथि से एक वर्ष बाद ही निश्चित थी, जो चैत्रकृष्णा नवमी होनी चाहिये । छह माह के उपवास से दीक्षा लेने एवं छह माह तक आहार न मिलने की घटना की संगति भी इससे बैठ जाती है। इसी के लिये प्राचीन ग्रन्थकारों ने दीक्षा के बाद एक संवत्सर के उपवास का उल्लेख किया है । किन्तु यदि परवर्ती ग्रन्थकारों द्वारा उल्लिखित पारणा - तिथि वैशाख शुक्ला तृतीया स्वीकार ली जाय तो दीक्षा तिथि के बाद एक सम्वत्सर ( वर्ष ) से १ माह ८ दिन का समय अधिक हो जाता है, जो तिलोयपण्णत्ति आदि प्राचीन ग्रन्थों के सन्दर्भों से प्रमाणित नहीं होता । अतः भगवान ऋषभदेव की प्रथम पारणा - तिथि एवं अक्षय तृतीया का सम्बन्ध विद्वानों के लिये विचारणीय विषय है ।
यदि दीक्षा के समय छट्ट उपवास लेने का अर्थ दो उपवास किया जाय, जैसा कि श्वेताम्बर परम्परा में किया गया है तो दीक्षा के एक सम्वत्सर बाद पारणा करने का औचित्य स्वीकार करना कठिन है । अतः वैशाख शुक्ला अक्षय तृतीया का सम्बन्ध ऋषभदेव की प्रथम पारणा तिथि से कैसे जुड़ा, इस सम्बन्ध
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