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डॉ. प्रेमसुमन जैन रहने पर क्षेत्रकृष्णा नवमी को हुआ था ।" उनके शरीर की उंचाई पांचसौ धनुष थी।१२ ऋषभदेव की आयु ८४ लाख पूर्व-वर्ष थी। उन्होंने २० लाख पूर्ववर्ष का कुमारकाल व्यतीतकर ६३ लाख पूर्व-वर्ष तक राज्य किया ।" उसके बाद नीलांजना नर्तकी के असामयिक मरण से वैराग्य उत्पन्न होने पर उन्होंने चैत्रकृष्णा नवमी के दिन तीसरे पहर उत्तराषाढ़ नक्षत्र में षष्ठ (मास के) उपवास के साथ दीक्षा धारण की १६ दीक्षा के एक हजार वर्ष बीत जाने पर उन्हें फाल्गुन कृष्ण एकादशी को पूर्वान्ह में केवलज्ञान प्राप्त हुआ ।" भगवान ऋषभदेव तृतीय (सुषमा-दुषमा) काल में जब ३ वर्ष ८ माह और एक पक्ष (१५ दिन) शेष थे तब सिद्धपद को प्राप्त हुए ।" इस बात का प्रकारान्तर से ग्रन्थाकारने फिर समर्थन किया है कि ऋषभजिनेन्द्र के मोक्ष-गमन के पश्चात ३ वर्ष, ८ माह और पन्द्रह दिन व्यतीत होने पर दुषमा-सुषमा नामक चतुर्थकाल प्रारम्भ हुआ ।
उसहजिणे णिव्वाणे वास तए अट्ठमास मासढ़े।
बोलीणम्मि पविटूठो दुस्सम-सुसमो तुरिम कालो ।। गा. १२८७ ।। तिलोयपण्णत्ति में वर्णित भगवान् ऋषभदेव के इन जीवन प्रसंगों में जैन परम्परा के अन्य ग्रन्थों के वर्णनों से कोई विशेष अन्तर नहीं हैं । सामान्य अन्तर इस प्रकार हैतिलोयपण्णत्ति
अन्य ग्रन्थ १-जन्म
चैत्रकृष्णा नवमी चैत्रकृष्ण अष्टमी २-वैराग्य उत्पत्तिकारण नीलांजना नर्तकी वसन्तऋतु की क्रीडा ३-दीक्षा तिथि चैत्रकृष्णा नवमी चैत्रकृष्णा अष्टमी ४-पारणा
दीक्षा तिथि से एक वर्ष बाद वैशाखशुक्ला तृतीया को (अर्थात चैत्रकृष्णा नवमी को)२२ (अर्थात् १ वर्ष १ माह
आठ दिन बाद)
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