Book Title: Jain Agam Sahitya
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 250
________________ तिलोयपण्णत्ति में प्राप्त ऋषभदेव की कुछ तिथियाँ डॉ. प्रेमसुमन जैन, उदयपुर श्री यतिवृषभाचार्य-विरचित तिलोयपण्णत्ति शौरसेनी आगम साहित्य का प्रमुख ग्रन्थ है । जैन परम्परा के भूगोल, गणित, इतिहास एवं दर्शन से सम्बन्धित विभिन्न विषयों का इसमें समावेश है । प्राकृत के इस प्राचीन ग्रन्थ का प्रथम बार प्रकाशन १९५३ एवं १९५१ में हुआ था। उसके बाद १९८६ में इसका संशोधित संस्करण प्रकाशित हुआ है । ग्रन्थ के सम्पादकों ने अपनी भूमिकाओं में विषयवस्तु, ग्रन्थकार एवं रचनाकाल आदि पर विशेष प्रकाश डाला है । तदनुसार तिलोयपण्णत्ति को ४७३ ई. से ६०९ ई. के बीचकी रचना स्वीकार किया गया है । लेखकने स्पष्ट रूप से अपना नाम ग्रन्थ में अंकित नहीं किया है, किन्तु प्रकारान्तर से यह प्रमाणित है कि तिलोयपण्णत्ति के रचयिता यतिवृषभ थे । तिलोयपण्णत्ति में दो प्रकार के ऐतिहासिक सन्दर्भ उपलब्ध हैं । जैन संघ की परम्परा का ऐतिहासिक वर्णन प्रस्तुत करते समय इस ग्रन्थ में चौबीस तीर्थकरों के जन्मान्तर, आयु, राज्यकाल, दीक्षा, केवलज्ञान, मोक्षगमन आदि का विवरण दिया गया है । इस विवरण में भगवान् ऋषभदेव के जीवन की कुछ घटनाओं का जो अकन हुआ है उनसे ऐतिहासिक समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं । महावीर के सम्बन्ध में जो विवरण इस ग्रन्थ में प्राप्त हैं, उनमें भी कुछ अन्तर देखने को मिलता है । महावीर के निर्वाण के बाद १००० वर्षों की जैन परम्परा का विवरण भी ग्रन्थ में विभिन्न मान्यताओं के साथ उपलब्ध है। इन सब ऐतिहासिक सन्दर्भो को जैन संध की परम्परा के परिप्रेक्ष्य में जांचना-परखना उपयोगी होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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