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तिलोयपण्णति में प्राप्त ऋषभदेव की कुछ तिथियाँ
२२७ यतिवृषभ ने दूसरे प्रकार के सन्दर्भ तत्कालीन राजवशों से सम्बन्धित दिये हैं । इनमें अवन्तिराज पालक से लेकर चतुर्मुख कल्की तक के राज्यकाल को १००० वर्षों में विभाजित किया गया है । इसे शकवंश, गुप्तवंश, कल्कीराज्य इन तीनों के शासनकाल की दृष्टि से भी प्रस्तुत किया गया है । भारत के प्राचीन राजवंशों से सम्बन्धित इन ऐतिहासिक सन्दर्भो का प्राचीन भारतीय इतिहास एवं सस्कृति के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन करना लाभदायक हो सकता है । इस अध्ययन से ग्रन्थ के प्रक्षिप्त अंशों को भी रेखांकित किया जा सकता है ।
तिलोयपण्णत्ति में तीसरे प्रकार के कुछ ऐसे सांस्कृतिक सन्दर्भ भी हैं, जिन्हें एकत्र कर तत्कालीन राजनीति, सभ्यता और साहित्य की खोयी हुई कड़ियों को जोड़ा जा सकता है । ग्रन्थकार यतिवृषभ द्वारा उल्लिखित उनके द्वारा रचित कषायप्राभूत चूर्णिसूत्र एवं षट्करणस्वरूप इन दो ग्रन्थों की खोज अभी तक नहीं हो सकी है। अन्य में कई बार उल्लिखित प्राकृत के दो महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों-लोयविणिच्छय एवं लोयविभाग (सर्व नन्दिकृत) को ज्ञात नहीं किया जा सका है। इस तिलोयपण्णत्ति में चतुरंगसेना, पंचांगसेना एवं षडंगसेना इन तीनों का एक ही प्रसंग में उल्लेख है । सैन्यशास्त्र के विकास की दृष्टि से इनके ऐतिहासिक क्रम को भी खोजा जा सकता है । अठारह श्रेणियों की गणना एवं महाराज आदि उपाधियों का प्रयोग प्राचीन राज्य व्यवस्था के इतिहास को जानने के लिये उपयोगी है । प्रन्थकारने राजा, अधिराजा, महाराजा, अर्ध मण्डलिक, मण्डलिक, महामण्डलिक, आदि के नाम ही नहीं गिनाये हैं, अपितु इनके लक्षण भी दिये हैं। ऋषभदेव सम्बन्धी विचारणीय स्थल
तिलोयपण्णत्ति में सुषमा-दुषमा काल के निरूपण के प्रसंग में तीथ करों के जीवन आदि का वर्णन है । उसी सन्दर्भ में भगवान ऋषभदेव के जन्म-काल से लेकर मोक्ष-गमन तक का वर्णन ग्रन्थकारने किया है। उसके अनुसार ऋषभदेव का जन्म अयोध्या के राजा नाभिराज एवं रानी मरुदेवी के यहाँ सुषमा-दुषमा काल में चौरासी लाख वर्ष पूर्व , ३ वर्ष ८ माह और एक पक्ष (१५ दिन) अवशेष
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