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आगम-साहित्य में कृष्ण कथा
डॉ. कमलेश कुमार जैन, वाराणसी जैन-परम्परा में मान्य २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ९ वलदेव और ९ प्रतिवासुदेव-इन ६३ विशिष्ट व्यक्तियों की गणना भरतक्षेत्र के शलाकापुरुषों-महापुरुषों के अन्तर्गत की जाती है ।' वासुदेवों के अन्तर्गत नवमें वामुदेव के रूप में कृष्ण की प्रतिष्ठा है । ये वही कृष्ण हैं, जो हिन्दू संस्कृति में कृष्णावतार के रूप में प्रसिद्ध हैं । इनके विविध रूपों का विवेचन हिन्दू पुराण एवं कथा साहित्य में विपुल मात्रा में उपलब्ध है । महाभारत में इनके चरित्र का पूर्ण विकास हुआ है । कृष्ण एक ऐतिहासिक महापुरुष हैं, इनका चरित्र इतना लुभावना एवं लोकविश्रुत है कि उनकी मान्यता न केवल हिन्दू धर्म, अपितु अन्य धर्मों में भी समान रूप से है ।
श्री कृष्ण का जन्म शौर्यपुर नगर के राजा वसुदेव की पत्नी देवकी से हुआ था । वे जैन-परम्परा में मान्य वर्तमान चौबीस तीर्थकरों में बाइसवें तीर्थ कर नेमिनाथ अथवा अरिष्टनेमि के चचेरे भाई थे। हिन्दू धर्म-ग्रन्थों में जिस प्रकार कृष्ण को भगवान् के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है, वैसी प्रतिष्ठा जैनागमों में नहीं मिलती है।
सामान्यतया जैन पुराणों एवं जैन कथानकों में कृष्ण के सम्पूर्ण जीवन का क्रमिक उल्लेख मिलता है, किन्तु जैनागमों में कृष्ण के जीवन से सम्बद्ध कतिपय अंशमात्र प्राप्त होते हैं । ये अंश भी वही हैं, जो प्रसङ्गवश उपस्थित हो गये है । अतः कृष्ण के सुसम्बद्ध जीवन की झांकी जैनागमों में दिखलाई नहीं देती है। फिर भी जैनागमों में कृष्ण का उल्लेख एक विशिष्ट पुरुष के रूप में किया गया है और उनके बहु-आयामी व्यक्तित्व की झलक अनेक स्थलों पर दृष्टिगोचर होती है । इस सन्दर्भ में यह ज्ञातव्य है कि आगम-ग्रन्थों के क्रम . से यदि कृष्ण के व्यक्तित्व का विवेचन किया जाये तो वह बिखरा-बिखरा सा
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