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पारिवारिक दायित्व का निर्वाह
कृष्ण अपने पारिवारिक दायित्व के प्रति भी सजाग थे। इसी कारण जब कुमार अरिष्टनेमि विवाह योग्य हो गये तो कृष्ण ने अपने चचेरे भाई कुमार अरिष्टनेमि के लिये महाराजा उग्रसेन से उनकी पुत्री राजीमती की याचना की थी, किन्तु बरातियों के भोजन के लिये निरपराध पशुओं के वध की बात सुनकर जब अरिष्टनेमि ने ऊर्जयन्त पर्वत पर श्रमण-दीक्षा ग्रहण कर ली तो कृष्ण ने बडे भाई होने के कारण कुमार अरिष्टनेमि को श्रमण - जीवन की सफलता हेतु आशीर्वाद भी दिया था ।"
कृष्ण का धार्मिक रूप
कृष्ण प्रत्येक प्राणी का कल्याण चाहते हैं, इसीलिये जब भगवान् अरिष्टनेमि द्वारवती में आते हैं तो वे अकेले ही भगवान् की वन्दना करने नहीं चल देते हैं, अपितु वे अपने कुटुम्बियों को बुलाते हैं और सामुदानिक मेरी द्वारा समस्त नगरवासियों को भगवान् के आगमन की सूचना देते हैं । तदनुसार अनेक राजा आदि कृष्ण की सेवा में उपस्थित होते हैं और फिर कृष्ण हाथी पर सवार होकर भगवान् की वन्दना को जाते हैं । कृष्ण का यह धार्मिक रूप निश्चय ही उनके व्यक्तित्व को उभारने में सहायक हुआ है ।
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आश्चर्य से सम्बद्ध कृष्ण
"ठाण " में जिन दस आश्चर्यो का उल्लेख किया गया है, उनमें 19 कहा है | सामान्यतया
नगरी में जाना
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पंचम आश्चर्य " कृष्ण का अवरकंका दो वासुदेवों का मिलन नहीं होता है । अर्थात् एक वासुदेव अपनी क्षेत्रमर्यादा को त्यागकर दूसरे की क्षेत्र - मर्यादा में नहीं जाता है - ऐसा नियम है, किन्तु भरतक्षेत्र के वासुदेव कृष्ण का घातकीखण्ड के वासुदेव कपिल की क्षेत्र - मर्यादा में जाना आश्चर्य है। यह अनहोनी घटना कृष्ण के साथ जुड जाने से कृष्ण
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का वैशिष्ट्य झलकता है ।
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कमलेशकुमार जैन
९.२१
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