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डॉ. वशिष्ठ नारायण सिन्हा, वाराणसी
२०. ठाणग, 4.92, प्रज्ञापना 3,1.290 २१. Indian Philosophy, Dr. C. D. Sharma, p. 385 २२. तुम'सि नाम तं चेव जं ह तव्व ति मन्नसि ।
तुम सि नाम त' चेव ज अज्जावेयव्व ति मन्नसि ।
तुम सि नाम त' चेव ज परियावेयव्व' ति मन्नसि । आचारांग सूत्र, 1.5. 5.5 २३. जे आया से विन्नाया, जे विन्नाया से आया।
जेण वियाणइ से आया, त' पडुच्च पडिसखाए । आचारांग सूत्र, 1.5-5.6 २४. We agree that Atman is the sole reality.
If we know it, all else is known___vide Radhakrishnan, Indian Philosophy, Vol. I p. 189 २५. जहाकुम्भे सअंगाई', सए देहे समाहरे ।
एव पावाई मेहावी अज्झप्पेण समाहरे || || सूत्र-कृतांग 1.8.16 २६. यदा संहरते चायं कूमोऽङ्गानीव सर्वशः ।।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 2-58
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