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जवूद्वीप प्रज्ञप्ति और भागवत में ऋषभचरित हुए थे । ज. प्र. अनुसार उन्होंने अपने राज्य के १०० प्रदेश १०० पुत्रों को बॉट दिये थे।" जवकि भागवत और महापुराण के अनुसार बडे पुत्र भरत को राज्य दिया गया था ।२२ ज. प्र. और भागवत में पुत्रों के बीच हुए युद्ध का उल्लेख नहीं है, जबकि महापुराण में भरत-बाहुबली युद्ध का विस्तृत वर्णन मिलता है। २७ हालांकि, भरत का युद्ध सहोदर भाइयों के साथ नहीं हुआ था ।
ज. प्र. में ऋषभदेव के गृहत्याग बाद के जीवन का विस्तृत वर्णन है, किन्तु गृहस्थ जीवन का अतिसंक्षिप्त वर्णन है, जबकि भागवत और महापुराणमें गृहस्थजीवन का भी उचित वर्णन मिलता है, जिसमें उनके दिव्य सामर्थ्य पर प्रकाश डाला गया है जैसे कि - भागवत के अनुसार एक दफा इन्द्रने ऋषभदेव की स्पर्धा की और वृष्टि नहीं की, अत: ऋषभदेव ने हँस कर अपने देश अजनाभ में वृष्टि की । महापुराण के अनुसार एक दफा प्रजा अन्नवस्त्र की कभी से व्यथित होकर नाभि राजा की आज्ञा से ऋषभदेव के पास गई। उन्होंने इन्द्र का स्मरण किया। इन्द्र वहाँ आया और प्रजा का दुःख दूर किया।
दोनों परंपरा स्वीकार करती है कि ऋषभदेव विशिष्ट समाजसुधारक थे । और उन्होंने उपदेश दिया था। भागवत के अनुसार उन्होंने अपने पुत्रों को मोक्षधर्म का उपदेश दिया था, जब कि ज. प्र. अनुसार जब वे गृहस्थ थे तब गृहस्थ धर्म का ( लिपि, कला, शिल्प, महिलागुण आदि ) और दीक्षा के बाद मोक्षधर्म का उपदेश दिया था।२५
दोनों पर पराएं स्वीकार करती है कि संन्यस्त अवस्था में वे नग्न रहे थे। ज. प्र. के अनुसार उन्होंने एक वर्ष तक वस्त्र पहीने थे, इसके बाद निर्वस्त्र बने थे। भागवत और महापुराण में संन्यस्त अवस्था में पीली जटा का वर्णन मिलता है । २७ इससे अनुमान किया जा सकता है कि महापुराण के समय तक
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