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प्रश्नव्याकरणसूत्र की प्राचीन विषयवस्तु की खोज
-डा० सागरमल जैन, वाराणसी
श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराएं यह स्वीकार करती हैं कि प्रश्नव्याकरणसूत्र (पण्हवागरण) जैन अंग-आगम साहित्य का दसवां अंग-ग्रन्थ हैं, किन्तु दिगम्बर परम्परा के अनुसार अंग-आगम साहित्य के विच्छेद (लुप्त) हो जाने के कारण वर्तमान में यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है । श्वेताम्बर परम्परा अंग साहित्य का विच्छेद नहीं मानती है । अतः उसके उपलब्ध आगमों में प्रश्नव्याकरण नामक ग्रन्थ आज भी पाया जाता हैं । किन्तु समस्या यह है कि क्या श्वेताम्बर परम्परा के वर्तमान प्रश्नव्याकरणकी विषय वस्तु वही हैं. जिसका निदेश अन्य श्वेताम्बर प्राचीन आगम ग्रन्थों में है अथवा यह परिवर्तित हो चुकी है । प्रश्न व्याकरण की विषयवस्तु सम्बन्धी प्राचीन निर्देश श्वेताम्बर परम्परा के स्थानांग (ठाणग), समवायांग, अनुयोगद्वार एवं नन्दींसूत्र में और दिगम्बर परम्परा के राजवार्तिक, धवला एवं जयधवला नामक टीका ग्रन्थों में उपल्ब्ध है । इनमें स्थानांग और समवायांग लगभग ३ री-४ थी शती के एवं नन्दी लगभग ५ वीं६ ठी शताब्दी का राजवार्तिक ८वीं शताब्दी का तथा धवला एवं जयधवला १० वीं शताब्दी के ग्रन्थ स्वीकार किये गये हैं ।
प्रश्नव्याकरण नाम क्यों ?
'प्रश्नव्याकरण' इस नाम को लेकर प्राचीन टीकाकारों एवं विद्वानों में यह
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