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प्रश्नव्याकरणसूत्र की प्राचीन विषयवस्तु की खोज
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व्याकरण नामक कुछ अन्य ग्रन्थों का संकेत किया है । 'प्रश्नव्याकरणाख्य जयपायड' के नाम से एक ग्रन्थ मुनि जिनविजयजीने सिंधी जैन ग्रन्थमाला के ग्रन्थ क्रमांक ४३ में सम्बत् २०१५ में प्रकाशित किया है । यह ग्रन्थ एक प्राचीन ताड़पत्रीय प्रति के आधार पर प्रकाशित किया गया है । ताड़पत्रीय प्रति खरतर - गच्छ के आचार्यशाखा के ज्ञानभण्डार जैसलमेर से प्राप्त हुई थी और यह विक्रम सम्बत् १३३६ की लिखी हुई थी । ग्रन्थ मूलत: प्राकृत भाषा में हैं और उसमें ३७८ गाथाएं हैं । उसके साथ संस्कृत टीका भी है । यह प्रकाशित ग्रन्थ पार्श्वनाथ विद्याश्रम वाराणसी के पुस्तकालय में है । ग्रन्थ का विषय निमित्तशास्त्र से सम्बन्धित है । इसी प्रकार जिनरत्नकोश में भी शान्तिनाथ भण्डार खंभात में उपलब्ध जयपाहुड़े प्रश्नव्याकरण नामक ग्रन्थ की सूचना उपलब्ध होती है ।" यद्यपि इसकी गाथा संख्या २२८ बताई गई है। एक अन्य प्रश्नव्याकरण नामक ग्रन्थ की सूचना हमें नेपाल के महाराजा की लायब्रेरी से प्राप्त होती है । श्री अगरचन्दजी नाहटा की सूचना के अनुसार इस ग्रन्थ की प्रतिलिपि तेरापन्थ धर्मसंघ के युवाचार्य मुनिश्री नथमलजीने प्राप्त कर ली है । इस लेख के प्रकाशन के पूर्व श्री जौहरीमलजी पारख, रावटी, जोधपुर के सौजन्य से इस ग्रन्थ की फोटो कापी पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान को प्राप्त हो गई है । इसे अभी पूरा पढा तो नहीं जा सका है, किन्तु तुलनात्मक दृष्टि से देखने पर ज्ञात हुआ कि इसकी मूलगाथाए तो सिंधी जैन ग्रन्थमाला के अन्तर्गत प्रकाशित कृति के समान ही हैं, किन्तु टीका भिन्न है । इसकी एक अन्य फोटो कापी लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर, अहमदाबाद से भी प्राप्त हुई हैं। एक अन्य प्रश्नव्याकरण की सूचना हमें पाटन ज्ञान भण्डार की सूचि से प्राप्त होती है । यह ग्रन्थ भी चूड़ामणि नामक टीका के साथ है । और टीका का प्रन्थांक २३०० श्लोक परिमाण बताया गया है । यह प्रति भी काफी पुरानी हो सकती है ।"
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इस सब आधारों पर ऐसा लगता है कि प्रश्नव्याकरण का निमित्तशास्त्र से
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