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डा० सागरमल जैन
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भासियाण ने अर्थ के सम्बन्ध में मी यहां हमे पुनर्विचार करना होगा । कहीं अद्दाग, अंगुष्ठ, बाहु, असि, मणि, खोम (क्षोम) और आदित्य व्यक्ति तो नहीं हैं- क्योंकि इनके द्वारा भाषित कहने का क्या अर्थ है ? स्थानांग के विवरण की समीक्षा करते हुए जैसीकी मैं ने सम्भावना प्रकट की है कि कहीं अद्दाग-आद्रक, बाहु-बाहुक, खोम-सोम नामक ऋषि तो नहीं हैं, क्योंकि ऋषिभाषित में इनके उल्लेख हैं । आदित्य भी कोइ ऋषि हो सकते हैं। केवल अंगुट्ठ, असि और मणि ये तीन नाम अवरय ऐसे हैं, जिनके व्यक्ति होने की सम्भावना धूमिल हैं।
इस समग्र चर्चा का फलित तो मात्र यही है कि ऋषिभाषित की विषयवस्तु समय समय पर बदलती रही हैं ।
क्या प्रश्नव्याकरणकी प्राचीन विषयवस्तु सुरक्षित है ?
- यहां यह चर्चा भी महत्त्वपूर्ण है कि क्या प्रश्नव्याकरण के प्रथम और द्वितीय संस्कारों की विषयवस्तु पूर्णतः नष्ट हो गई है या वह आज भी पूर्णतः या आंशिक रूप में सुरक्षित हैं।
मेरी दृष्टि में प्रश्नव्याकरण के प्रथम संस्करण में ऋषिभाषित, आचार्यभाषित और महावीरभाषित के नाम से जो सामग्री थी वह आज भी ऋषिभाषित, ज्ञाताधर्मकथा, सूत्रकृतांग एवं उत्तराण्ययन में बहुत कुछ सुरक्षित है । ऐसा लगता है कि ईस्वी सन् के पूर्व ही उस सामग्री को वहां से अलग कर इसिभासियाई के नाम से स्वतन्त्रग्रन्थ के रूप में सुरक्षित कर लिया गया था। जैन परम्परा में ऐसे प्रयास अनेक बार हुए हैं जब चूला या चूलिका के रूप में ग्रन्थों में नवीन
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