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असद्भाव स्थापना - अक्षादि में मंगल की स्थापना, असद्भाव स्थापना मंगल है। सद्भाव स्थापना - चित्रभिति पर चित्रित घट आदि सद्भाव स्थापना मंगल है । देवलोक में चित्रभित्ति पर चित्रित घट आदि यावत्कथिक (शाश्वत) स्थापना मंगल होते है । मनुष्य लोक में होनेवाले चित्रित घट
आदि इत्वरिक स्थापना होते है। प्र.24 ग्रन्थकार ने चैत्यवंदन भाष्य में मंगलाचरण किस प्रकार से किया है ?
चैत्यवंदन भाष्य की प्रथम गाथा के प्रथम चरण (पाद) में 'वंदित्तु वंदणिज्जे सव्वे' पद द्वारा सर्वज्ञ भगवंतों को वंदन करके मंगलाचरण
किया है। प्र.25 'वंदणिज्जे' शब्द का प्रयोग भाष्य कर्ता ने क्यों किया है ?
वंदन करने योग्य सर्वज्ञ परमात्मा है । जिसमें अरिहंत व सिद्ध परमात्मा समाविष्ट होते है। फिर भी भाष्यकार वंदणिज्जे विशेषण का प्रयोग कर यह स्पष्ट करते है कि वंदन करने योग्य गुणों - अनन्त ज्ञान-दर्शनचारित्र-वीर्य-स्थिति आदि आठ गुणों से युक्त आत्माएं ही सर्वज्ञ होने से वंदनीय है । अन्य धर्मावलम्बी जो अल्पज्ञ (आठ गुणों - अनंत ज्ञान आदि से रहित) को भी सर्वज्ञ कहते है, उनका निराकरण करने के उद्देश्य से 'वंदणिज्जे' पद का प्रयोग किया है।
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मंगलाचरण का कथन
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