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1. मानसिक मंगलाचरण - कार्य के प्रारम्भ में अंतर मन से परमात्मा की स्तुति-स्तवना करना, मानसिक मंगलाचरण कहलाता है। 2. वाचिक मंगलाचरण - निबद्ध व अनिबद्ध नामक दो भेद -- i. निबद्ध वाचिक मंगलाचरण - ग्रंथ के आदि में ग्रंथकार द्वारा श्लोकादिक की रचना से इष्ट देवता को नमस्कार करना, निबद्ध वाचिक मंगलाचरण कहलाता है। ii. अनिबद्ध वाचिक मंगलाचरण - श्लोकादि की रचना के बिना ग्रन्थ के प्रारम्भ में स्तुति-स्तवना एवं गुणकीर्तन करना, अनिबद्ध वाचिक मंगलाचरण कहलाता हैं। 3. कायिक मंगलाचरण - काया के द्वारा झुककर इष्ट देवता को जो नमस्कार / प्रणाम / वंदन किया जाता है, वह कायिक मंगलाचरण
कहलाता हैं। प्र.18 ` मुख्य मंगल और गौण (अमुख्य) मंगल किसे कहते हैं ? उ. मुख्य मंगल - शास्त्र के आदि, मध्य व अन्त में विघ्न निवारण हेतु
जिनेश्वर परमात्मा का जो गुण स्तवन किया जाता है, उसे मुख्य मंगल कहते
गौण मंगल - पीली सरसों, पूर्ण कलश, वंदनमाला, छत्र, श्वेत वर्ण, दर्पण, उत्तम जाति का घोडा आदि लौकिक मंगल को गौण मंगल कहते
प्र.19 मंगल शास्त्रों में कितने स्थानों पर और क्यों किया जाता है ? उ. मंगल शास्त्रों में तीन स्थानों पर - आदि, मध्य और अंत में निम्न कारणों
से किया जाता है। ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ 8
मंगलाचरण का कथन
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