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और साधु, इन नामों को नाम मंगल कहते हैं । स्थापना मंगल - जिनेश्वर परमात्मा के कृत्रिम और अकृत्रिम प्रतिमाएँ, स्थापना मंगल कहलाती है । द्रव्य मंगल - पंच परमेष्ठि में से आचार्य, उपाध्याय तथा साधु के शरीर द्रव्य मंगल है। भाव मंगल - वर्तमान में मंगल पर्यायों से परिणत जो शुद्ध जीव द्रव्य (पंच परमेष्ठि की आत्माएँ) है, वे भाव मंगल है। क्षेत्र मंगल - गुण परिणत आसन क्षेत्र अर्थात् जहाँ पर परमात्मा ने योगासन, वीरासन आदि किये और जहाँ पर परमात्मा ने दीक्षा ग्रहण की व केवलज्ञान प्राप्त किया वे स्थान, क्षेत्र मंगल कहलाते हैं। जैसे-पावापूरी, गिरनार आदि। जगत् श्रेणी के घनमात्र अर्थात् लोक प्रमाण आत्मा के प्रदेशों से लोक पूरण समुद्घात द्वारा पूरित सम्पूर्ण लोकों (उर्ध्व, अधो व तिर्यक्) के प्रदेश, क्षेत्र मंगल कहलाते है। साढ़े तीन हाथ से लेकर 525 धनुष प्रमाण शरीर में स्थित और केवल ज्ञान से व्याप्त आकाशप्रदेश, क्षेत्र मंगल कहलाते है । काल मंगल - दीक्षाकाल, केवलज्ञान का उद्भव काल और निर्वाण काल, ये सभी पाप रुपी मल को गलाने का कारण होने से काल मंगल कहलाते है।
तिलोय प. 1/19-27 प्र.17 धवला टीकानुसार मंगलाचरण के प्रकार बताइये ? उ. धवला टीकानुसार मंगलाचरण के तीन प्रकार - 1. मानसिक मंगलाचरण,
2. वाचिक मंगलाचरण 3. कायिक मंगलाचरण है । *************************************++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी ..
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