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यम की हमेशा मर्यादा नहीं ठहर सकती ।
४- पचास दिने तो ग्रामादि न होवे तो जंगल में वृक्षनीचे भी अवश्यही पर्युषणा करनेकी आवश्कता बतलाई है और ७० दिनकी स्वाभाविक गिनती बतलायी परंतु वैसी ही ७० दिनकी आवश्यकता नहीं बतलायी, इसलिये भी ७० दिनका नियत नियम नहीं है ।
५- ७० दिवलका पाठ मास वृद्धिके अभाव संबंधी है, इसलिये उसको मासवृद्धि होनेपर भी आगे करना शास्त्रकार महाराजके अभिप्राय विरुद्ध होने से योग्य नहीं है ।
६- इन्ही समवायांग सूत्रके टीकाकार महाराजने स्थानांग सूत्र. वृत्ति, मासवृद्धि होवें तब पर्युषणाके पिछाडी कार्तिकतक १०० दिन ठहरनेका कहा है । उसको उत्थापना और शास्त्रकर महाराजके अभिप्राय विरुद्ध होकर १०० दिनकी जगहभी ७० दिन ठहरने का बतलाना आत्मार्थियों को योग्य नहीं है ।
७- निशीथचूर्णि - बृहत्कल्पचूर्णि कल्पानियुक्ति चूर्णि - वृत्तिगच्छाचारपयन्नवृत्ति-जीवानुशासन वृत्ति वगैरह प्राचीन शास्त्रों में, वर्षास्थितिकेलिये कालावग्रहमें, जघन्यसे ७० दिन, मध्यम से ७५८०-८५-९०-९५ यावत् १२० दिन, और उत्कृष्टसे १८० दिनका प्रमाण बतलाया है । उसके अंदर मैले १ दिनमात्र भी गिनती में नहीं छुट सकता. जिसपरभी शास्त्रविरुद्ध होकर वर्षस्थितिके अनियत व जघन्य ७० दिनों कों हमेशां नियत ठहराने का आग्रह करना विantrat योग्य नहीं है ।
८- निशीथचूर्ण्यादिमें द्रव्य-क्षेत्र काल और भावसे पर्युषणाकी स्थापना करनी बतलायी है, उसमें कालस्थापना संबंधी समयआवलिका - मुहूर्त-दिन - पक्ष - मास से अधिकमहिनेके ३० दिनोंकी गिनति सहित प्रत्येक दिवसको पर्युषणासंबंधी कालस्थापनाके अधिकार में गिनती में लिये हैं । इसलिये पर्युषणाके व्यवहारमै १ दिन भी गिनती में निषेध नहीं होसकता. जिसपरभी जघन्य ७० दिनके अनियत नियमको मास बढनेपरभी आगे करते हैं और फिर १०० दिनके ७० दिन अपनी कल्पनासे बनाते हैं सो सर्वथा चूर्णि के विरुद्ध है, इसका विशेष विचार तत्व जन स्वयं कर लेवेंगे ।
९- सीत्तर दिनका नियत नियम न होनेसे ७० दिनके ऊपर ज्यादेदिनभी होते हैं, और " वासावासाए अणावुद्दपि, आसोप क
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