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बाईस ९४-१०६ . आचार्य रघुनाथजी का अपने भक्तों के दलबल के साथ. वहां
आना और भिक्षु को समझाना। गुरु-शिष्य के प्रश्नोत्तर। १०७-१०८ आचार्य रघु के आर्द्र नयनों को देख मुनि उदयभानजी का
प्रश्न और गुरु का समाधान । १०९-११४ आचार्य रघुनाथजी के हृदय-द्रावक उपक्रम से भी अविचलित
मुनि भिक्षु के विचार। ११५ आचार्य द्वारा भावी आपदाओं की अवगति देना, भय
दिखाना। ११६-११७ अभीत मुनि भिक्षु की दृढ़ता ।।
आंधी के विरत होने पर भिक्षु का अन्यत्र विहार । ११९ बरलू नगर में चर्चा का उपक्रम । १२०-१२७ श्रामण्य-पालन की दुरनुचरता के प्रसंग में मुनि भिक्षु का
कथन और आचार्य को उद्बोधन देने का असफल प्रयास । १२८-१८९ आचार्य जयमलजी से मिलन, उनके साथ आचार-विचार
विषयक विस्तृत वार्तालाप । हिंसा-अहिंसा, दया-दान, सावद्यनिरवद्य, पुण्य-पाप, आदि तात्त्विक विषयों की चर्चा । सैद्धांतिक प्रमाणों की उन्हें जानकारी देना । आचार्य जयमलजी की सहयोग देने की मनःस्थिति और भिक्षु के साथ संघमुक्त
होने की प्रबल मानसिकता बताना । १९०-१९३ आचार्य रघुनाथजी को आचार्य जयमलजी की मनःस्थिति की
जानकारी । उपायों से जयमलजी को अपनी ओर आकृष्ट
करना। १९४-१९६ आचार्य जयमलजी द्वारा मुनि भिक्षु के उपक्रम की सराहना
करना, सत्य-क्रांति का अनुमोदन करना, पर सहयोगी बनने ... . की अपनी असमर्थता प्रगट करना ।
१९७ मुनि भिक्षु की कष्ट-सहिष्णुता ।
१९८ काव्यकार का आत्म-निवेदन । दसवां सर्ग • १-२ "मुनि 'भारीमल की योग्यता का वर्णन । १३-१३ मुनि भारीमल के पिता मुनि · कृष्णोजी की समस्या और
समाधान। १४ बाल मुनि भारीमल। १५-१७ मुनि भिक्षु के साथ अन्य बारह मुनियों के अभिधान और
. उनके गच्छों का निर्देश ।