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इक्कीस २४-४२ मिश्रधर्म की मान्यता की अतात्विकता और उससे होने वाले
'अन्यान्य दोष । ४३ प्रशस्त योग और अप्रशस्त योग । ४४ आगमवचन पर प्रतीति रखने का निर्देश । ४५ आज्ञा धर्म, अनाज्ञा अधर्म ।
। ४६ आग्रहमुक्त होने की प्रार्थना । । । ४७ क्या हम रत्नत्रयी से भी वंचित नहीं हैं ? ४८ श्रामण्य का स्वीकार क्यों ? . ४९ तिन्नाणं तारयाणं बनने की प्रार्थना। . ५० आत्मकल्याण की भावना से ही निवेदन । ५१ हिंसा में निमित्त न बनना ही ध्येय । ५२ मनुष्यजन्म और चरित्र-प्राप्ति दुर्लभ । ' ५३ आग्रह-त्याग की प्रार्थना । ५४ आत्म-निवेदन पर ध्यान देने की प्रार्थना । ५५ भिक्षु के कथन से आचार्य रघुनाथजी का कोपारुण होना। ५६ रघु का कथन-'मेरे वचनों पर श्रद्धा रखो' । मुनि भिक्षु का
प्रत्युत्तर । ५७ विश्वास की उत्पत्ति कैसे ? ५८ द्रव्याचार्य की विपरीत अवस्था के कारंण मुनिश्री द्वारा
कालक्षेप का चिंतन । ५९-६० साथ में चातुर्मास कर आगमिक चर्चा द्वारा सत्य-असत्य के
निर्णय का निवेदन । ६१ आचार्य रघुनाथजी को संघभेद की आशंका। .......
६२ गुरु की अनुमति से मेडता चातुर्मास के लिए प्रस्थान । ६३.६६ चातुर्मास संपन्न कर पुन: गुरुचरणों में आगमन, पुनः विचार
करने का नम्र निवेदन, तत्त्वचर्चा आदि । ६७-७१ गुरु के विचार-परिवर्तन की असंभाव्यता पर मुनि भिक्षु का
विचार-मंथन । ७२-८२ विचार-मंथन में सहयोगी बनने वाले वसंत ऋतु का वर्णन,
उसका प्रेरक संबोध। .. .. : .. ८३-८६ विक्रम संवत् १८१७ चैत्र शुक्ला नवमी बगडी नगर में संघ
विच्छेद कर मुनि भिक्षु का स्थानक से बहिर्गमन । ८७-९१ आचार्य द्वारा उत्पादित कष्ट तथा. उनसे अस्पृष्ट मुनि भिक्षु । ९२-९३ मुनि भिक्षु का अपने सहयोगी संतों के साथ गांव बाहर आना,
आंधी का प्रकोप, श्मशान की छतरी में ठहरना।