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भद्रबाहुसंहिता
व्यक्ति रोग से पीड़ित होता है तथा वस्त्र-भोक्ता कोअत्यधिक मानसिक ताप उठाना पडता है। ठीक मध्य में वस्त्र के जलने या कटने से व्यक्ति को शारीरिक कष्ट, धननाश और पद-पद पर अपमानित होना पड़ता है । वस्त्र के मूल भाग में जलना या कटना साधारणतः शुभ माना गया है । अग्रभाग में वस्त्र का छिन्न-भिन्न होना साधारणतः ठीक समझना चाहिए । वस्त्र को धारण करने के दिन से लेकर दो दिनों तक छिन्न-भिन्न होने के शुभाशुभत्व का विचार करना आवश्यक माना गया है। धारण करने के तत्क्षण ही वस्त्र जल या कट जाय तो उसका फल तत्काल और अवश्य प्राप्त होता है । धारण करने के एकाध दिन बाद यदि वस्त्र जले, कटे या फटे तो उसका फल अत्यल्प होता है । गर्ग आदि आचार्यों का मत है कि वस्त्र के शुभाशुभत्व का विचार वस्त्र धारण करने के एक प्रहर तक ही करना ज्यादा अच्छा होता है । एक प्रहर के पश्चात् वस्त्र पुरातन हो जाता है, अतः उसके शुभाशुभत्व का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता । वस्त्र में किसी पदार्थ का दाग लगना भी अशुभ माना गया है । गोदुग्ध या मधु के दाग को शुभ बताया है।
नये वस्त्रों में कुर्ता, टोपी, कमीज, कोट आदि ऊपर पहने जाने वाले वस्त्रों का विचार प्रमुख रूप से करना चाहिए तथा शुभाशुभ फल ऊपरी वस्त्रों के जलनेकटने का विशेष रूप से होता है । धोती, मोजा, पायजामा, पेण्ट आदि के जलनेकटने का फल अत्यल्प होता है । सबसे अधिक निकृष्ट टोपी का जलना या फटना कहा गया है । जिस व्यक्ति की टोपी धारण करते ही फट जाय या जल जाय तो वह व्यक्ति मृत्यु तुल्य कष्ट उठाता है । टोपी के ऊपरी हिस्सा का जलना जितना अशुभ होता है, उतना नीचे के हिस्सा का जलना नहीं। रविवार, मंगल और शनिवार को नवीन वस्त्र धारण करते ही जल या कट जाय तो विशेष कष्ट होता है। सोमवार और शुक्रवार को नये वस्त्र के जलने या कटने से सामान्य कष्ट तथा गुरुवार और बुधवार को वस्त्र का जलना भी अशुभ है।
अन्तरिक्ष-ग्रह नक्षत्रों के उदायस्त द्वारा शुभाशुभ का निरूपण करना अन्तरिक्ष निमित्त है । शुक्र, बुध, मंगल, गुरु और शनि इन पाँच ग्रहों के उदयास्त द्वारा ही शुभाशुभ फल का निरूपण किया जाता है। यतः सूर्य और चन्द्रमा का उदायस्त प्रतिदिन होता है, अतएव शुभाशुभ फल के लिए इन ग्रहों के उदयास्त विचार की आवश्यकता नहीं पड़ती है । यद्यपि सूर्य और चन्द्रमा के उदयास्त के समय दिशाओं के रंग-रूप तथा इन दोनों ग्रहों के बिम्ब की आकृति आदि के विचार द्वारा शुभाशुभत्व का कथन किया गया है, तो भी गणित क्रिया में इनके उदयास्त को विशेष महत्ता नहीं दी गयी है। निमित्त ज्ञानी उक्त पांचों ग्रहों के उदयास्त से ही फलादेश का कथन करते हैं। वास्तव में इन ग्रहों का उदायस्त विचार है भी महत्त्वपूर्ण।
शुक्र अश्विनी, मृगशिरा, रेवती, हस्त, पुष्य, पुनर्वसु, अनुराधा, श्रवण और