Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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८ : सरस्वती-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रन्थ
आभार प्रकट करनेके लिए अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशनका निर्णय उचित ही है। यह अभिनन्दन पंडितजीका नहीं है बल्कि साहित्य तथा दर्शनका अभिनन्दन है ऐसी मेरी भावना है । मेरा बारम्बार नमन । जिनवाणीके परम आराधक •श्रीमन्त सेठ राजेन्द्रकुमार जैन, एडवोकेट, विदिशा
परम आदरणीय श्रद्धेय पं० बंशीधरजीका अभिनन्दन उनकी ही नहीं, प्रत्युत उनकी विद्वत्ताकी महिमाका परिचायक है। आदरणीय पंडितजीने अपना जीवन जिनवाणीमें लगातार सार्थक किया है। इसके परम लक्ष्यसे उनका जीवन जीवंत होगा। जिनवाणीका परमलक्ष्य वीतराग विज्ञानताका है और इससे समन्वित जीवन ही जीवंत होता है । ऐसे जीवनको पीकर भवचक्रकी परवाह नहीं रहती। जिनवाणीका यही भाव भाषण उनके जीवनमें आवे, यह भावना है और यही उनका वास्तविक सम्मान है। जैनजगत्के गौरव पुंज .श्री सौभाग्यमल जैन, लखनऊ
श्रद्धेय पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्य, सिद्धान्तचार्य समग्र जैन जगतके चोटीके मूर्धन्य विद्वान एवं गौरव पुंज है । श्रद्धय पं० जी आरम्भसे अब तक चौरासी वर्षको उम्न होने पर भी जैनधर्मकी महती न्यायपूर्ण समीचीन आर्षमार्गकी सैद्धान्तिक सेवा कर रहे हैं। श्रद्धेय पं० जीने कानजी पंथके विरुद्ध खानिया तत्त्व चर्चामें प्रमुख भाग लिया था और उस विषय पर सप्रमाण अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। वे उनकी अनेकांतमयी आर्षमार्ग पर दृढ़ श्रद्धाको प्रतिष्ठापित करते हैं।
मैं वीर प्रभसे मंगल कामना करता हूँ कि आप दीर्घजीवी हों एवं आर्षमार्ग वीतरागमार्गके अनुयाइयोंको समुचित मार्गदर्शन देते रहें । अनुकरणीय साहित्य-साधना •श्री प्रेमचन्द्र जैन, अध्यक्ष-राजकृष्ण जैन चेरिटेबल ट्रस्ट, दिल्ली
हमें यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि विद्वद्वर्य पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्यको अखिल भारतीय स्तरपर समाज अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट करनेको जा रही है। पण्डितजीकी सेवाओंको देखते हुए समाजका यह निर्णय निःसन्देह प्रशंसनीय है।
व्याकरणाचार्यजी आरम्भसे ही स्वतंत्र चिन्तक और विचारक हैं। उन्होंने शिक्षाको कभी आजीविका का साधन नहीं बनाया । अतएव वे स्वतंत्र व्यवसायी रहते हुए देश, समाज, साहित्य और धर्मकी सेवामें संलग्न है । आपने गजरथ विरोधी आन्दोलन व अनेक आन्दोलनोंमें भाग लिया। बामौराका दस्सा पूजाधिकारका ऐतिहासिक मकदमा भी आपने लड़ा। आप गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसीके वर्षों मंत्री रहे । अ०भा० दि० जैन विद्वत्परिषदके अनेक वर्षों तक मंत्री व अध्यक्ष रहे। गुरु गोपालदास वरैया शताब्दी समारोह आपके अध्यक्ष कालमें सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ था।
आप सफल पत्रकार, लेखक और सम्पादक भी हैं। शान्तिसिन्धु और सनातन जैन पत्रोंका आपने योग्यतापूर्वक सम्पादन किया है । विभिन्न पत्र-पत्रिकाओंमें सैकड़ों लेख आपने लिखे हैं। उनमें अनेक लेख तो बहुत ही चिन्तनपूर्ण और गंभीर है। जैनतत्त्व-मीमांसाकी समीक्षा, जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चाकी समीक्षा, जैनदर्शनमें निश्चय और व्यवहार जैसी पुस्तकें तो जैनसाहित्यकी अमूल्य निधि हैं। तात्पर्य यह है कि आपकी समाजकी सेवा और साहित्यकी साधना निश्चय ही वर्तमान और भावी पीढ़ीके लिए अनकरणीय है।
पा।
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