Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
६ : सरस्वती-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रन्थ
मैं पण्डितजीसे व्यक्तिगत कभी परिचित नहीं हुआ हूँ, फिर भी उनकी लेखनीसे प्रसूत आगमनिष्ठ, तर्कपूर्ण लेखावली तथा ग्रन्थावलीसे अवश्य प्रभावित हूँ।
प्रकाश्य अभिनन्दन ग्रन्थ उनकी व्यक्तिगत स्याद्वादभित रचनाओंका एक प्रामाणिक संग्रह होगा और उसे विद्वद्गण और स्वाध्यायनिष्ठ जनता अपनायेगी तथा स्वाध्याय करेगी, ऐसी आशा है ।
आदरणीय पण्डितजीके प्रति मैं अपने श्रद्धा-सुमन समर्पित करता हुआ उनके स्वस्थ एवं चिरायुष्यकी मंगल-कामना करता हूँ। जैन विद्वानोंमें कीर्तिमान •श्री देवकुमार सिंह, कासलीवाल, इन्दौर
आदरणीय पण्डितजीने जैन विद्वानोंमें कीर्तिमान स्थापित कर विशेष स्थान प्राप्त किया है, उस परिप्रेक्ष्यमें उनका अभिनन्दन समयोचित एवं प्रशंसनीय है।
आदरणीय पण्डितजी स्वस्थ्य एवं दीर्घायु हों, ऐसी वीर प्रभुसे प्रार्थना है। समाजको महान विभूति .श्री रमेशचन्द्र जैन, कार्यकारी निदेशक, टाइम्स ऑफ इण्डिया, नई दिल्ली
सिद्धान्ताचार्य पण्डित बंशीधरजी शास्त्री व्याकरणाचार्य जैन समाजके मूर्धन्य विद्वानोंमें हैं। उनके ज्ञानके आलोकसे जैन वाङ्मयकी आमा चारों ओर फैली है। समाज गौरवान्वित और धन्य हुआ है। ऐसे विद्वान् , मनीषी और साहित्यके साधकका आप अभिनन्दन कर रहे हैं, यह नितान्त हर्षका विषय है।
जैनदर्शनके अधिकारी विद्वान् पण्डित बंशीधरजीका जीवन प्रेरणाका अजस्र स्रोत है। ८४ वर्षकी अवस्थामें भी यह कर्मठ व्यक्तित्व साहित्य-साधनामें संलग्न है। ज्ञान, ध्यान, चिन्तन और मननके सागरको मथकर पण्डितजीने जिस सुधारसका पान समाजको कराया है, समाज उससे कभी उऋण नहीं हो पायेगा । पण्डितजी हमारी विभूति हैं । प्रभु उन्हें चिरायु करें, वे स्वस्थ रहे, यही उनके चरणोंमें मेरी विनयांजलि है । मंगल कामना •स० सिं० धन्यकुमार जैन, कटनी
पण्डित बंशीधरजी व्याकरणाचार्य बीना पुरानी पीढ़ीके पण्डित वर्गमेंसे एक विद्वान् है । आज उनकी आयु ८४ वर्षकी है। पुरानी पीढ़ीके विद्वानोंमें प्रायः कुछ ही विद्वान् बचे हैं। इन्होंने अपने जीवनकालमें राष्ट्र, समाज, जाति और धर्मकी सेवा की है । अपनी स्वतन्त्र-विचारधारा, चिन्तन-मनन और लेखनकी उनकी अपनी विशेष शैली रही है। जैन आगम पर उन्होंने साहित्य सृजन किया है । उनके अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पण योजनाका मैं स्वागत करता हैं। वे दीर्घजीवी हों, समाज और धर्मकी चिरकाल तक वे सेवा करें-इसकी मैं मंगल कामना करता हूँ। सही अर्थों में सरस्वती वरदपुत्र .श्री बाबूलाल पाटोदी, इन्दौर
__ श्रद्धेय पण्डित बंशीधरजी व्याकरणाचार्य सही अर्थोंमें सरस्वती वरदपुत्र हैं। मुझे उन्हें सुननेका अवसर प्राप्त हुआ, उनको स्पष्ट भाषा, तार्किक शैली श्रमण-परम्परासे कभी विमुख नहीं हई। वे जिनवाणी एवं आचार्योंके कथनमें किसी प्रकारकी मिलावट नहीं चाहते । उन्हें कभी पद एवं प्रतिष्ठाका मोह नहीं रहा।
परम्परास कभी विमुख नहीं हुई व जिनवाणी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org