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- कथा: भाग १
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कुछ बच गया, इसका एक कारण मैंने ऊपर बताया। इस सिलसिले में एक और बात कहने जैसी है । सैकड़ों अनुभवोंसे मैंने यह निचोड़ निकाला है कि जिसकी निष्ठा सच्ची है, उसे खुद परमेश्वर ही बचा लेता है। हिंदू-संसार में जहां बालविवाहकी घातक प्रथा है, वहां उसके साथ ही उसमें कुछ सुक्ति दिलानेवाला भी एक रिवाज है | बालक वर-वधू को मां-बाप बहुत समयतक एकसाथ नहीं रहने देते । बाल-पत्नीका श्रासे ज्यादा समय मायकेमें जाता है । हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ । अर्थात् हम १३ और १० सालकी उमरके दरमियान थोड़ा-थोड़ा करके तीन सालसेवक साथ न रह सके होंगे। छः बाठ महीने रहना हुआ नहीं कि पत्नी मानका बुलावा आया नहीं। उस समय तो वे बुलावे बड़े नागवार मालूम होते । परंतु सच पूछिए तो उन्हींके बदौलत हम दोनों बहुत बच गये। फिर १८ साल की अवस्था में विलायत गया -- लंबे और सुन्दर वियोगका अवसर आया। विलायतने लौटनेपर भी हम एकसाथ तो छः महीने मुश्किलसे रहे होंगे, क्योंकि मुझे राजकोट-बंबई वार-बार आना-जाना पड़ता था । फिर इतने में ही दक्षिण अफ्रीका का निमंत्रण श्रा पहुंचा और इस बीच तो मेरी मांचें बहुत कुछ खुल भी चुकी थीं ।
हाई स्कूल में
मैं पहले लिख चुका हूं कि जब मेरा विवाह हुआ तब में हाई प था । उस हम तीनों भाई एक ही स्कूल में पढ़ते थे। बड़े भारी बहुत ऊपरके दरजे में थे और जिन भाईका विवाह मेरे साथ हुआ वह मुझसे एक दरजा ग्रागे थे । विवाहका परिणाम यह हुआ कि हम दोनों भाइयोंका एक साल बेकार गया । मेरे भाईको तो और भी बुरा परिणाम भोगना पड़ा। विवाह के पश्चात् वह विद्यालय में रह ही न सके । परमात्मा जाने, विवाह कारण ि
ऐसे अनिष्ट परिणाम भोगने पड़ते हैं। वाध्ययन और विवाह ये दोनों बातें हिंदु समाज ही एक साथ हो सकती है।