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श्री अष्ट
प्रकार पूजा ॥१॥
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निरन्तर दूर किया है अष्ट कर्म रूपी कलङ्क जिस ने, केवल ज्ञान के प्रकाश से किया है तीन लोक में उद्योत जिसने और देवता तथा मनुष्यों के हृदय रूप कुमुदों (रात्रि विकासी कमल ) को प्रफुल्लित करने वाले श्री जिनचन्द्र भगवान् को सर्व काल, हे भव्यो ! तुम नमस्कार करो । यहां जिनचन्द्र पद से चौवीसवें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी जान लेना चाहिये ।
गाथा = जीइयसायसमीरण - समोहयं गलइ मेहविंदब्य । अनाणं जीवाणं तं नमह सरस्सई देवीम् ॥२॥ संस्कृतच्छाया = जीवितसातसमीरण-- समूहितं गलति मेघवृन्दमिव । अज्ञानं जीवानां तां नमत सरस्वतीं देवीम् ॥ २ ॥
व्याख्या = जिस श्रुत देवता के सम्बन्ध से जीवों का अज्ञान, वायु के वेग से मेघों के समूह के जैसे, नाश को प्राप्त होता है उस सरस्वती देवी को हे भव्यो ! नमस्कार करो। ॥ अधुनाऽष्टविधपूजाप्रकारान् दर्शयति ॥
गार्थी = वर गन्ध-धूष - चोक्खकणेहि, कुसुमेहिं पवरदीवेहिं । नवज्ज-फल-जलेणं, अट्ठ विहा होइ जिणपूया ॥३॥
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