Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 91
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir श्री भए मालम होते हैं अपने भी इनको भक्ति और बिनय के साथ बन्दना करें ऐसे वचन सुनकर विनयी जयकुमार प्रकार , ने अपने सेनादिक परिवार के साथ मुनिराज को बन्दना की। मुनिराज ने धर्मलाभ दिया, तदनन्तर संसार सागर से तारिणी धर्मदेशना दी। फिर मुनि ने जयकुमार और विनयश्री से नाम लेकर कहा तुम्हारा आना ठीक हुआ तुमको धर्म की प्राप्ति हो। इस प्रकार मुनिनायक के वचन सुनकर अपने हृदय में विस्मित हुई विनयश्री इस तरह विचार करने लगी। दोनों ही के हृदय में आश्चर्य हुआ, यह मुनि हमारे नाम कैसे जानते हैं ? फिर धीरज धारण किया कि जो ज्ञानी होते हैं उनका क्या आश्चर्य ? उनसे कोई बात छिपी नहीं है। दोनों ही के मन में पूर्वभव की बात सुनने - का कोतूहल उत्पन्न हुआ। श्री वीतराग का धर्म दोनों ही ने सुना इतने में मुनिवर को प्रणाम कर जयकुमार ने * पूछा, हे भावन् ? मैंने कौनसा पुण्य पूर्वभव में उपार्जन किया जिससे मैंने निर्मल मनोवांछित सुख राज्य कलत्रादि सुख पाया । आप कृपाकर मेरे पूर्व भव का सम्बन्ध कहिये। ऐसा सुन ध्यानी और ज्ञानी प्राचार्य ने कुमार के पूर्वभव का वृत्तान्त कहना प्रारंभ किया। हे महायशस्वी! राजकुमार । तुम पूर्व भव में एक व्यवहारी के पुत्र थे यह जिनमती तुम्हारी बड़ी वहिन थी, तुमने एक। For Private And Personal use only

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