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Shin Mahavir Jain Aradhana Kendre
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Acharya Shil kailassagar
Gyanmandi
MS
श्री अष्ट
لال لحلحلاج
कितने ही दिन व्यतीत होने पर कुमार के पिता सूर राजा ने गुरु मुखसे धर्मोपदेश सुन कर कुमार को राज पद पर बैठा दिया और स्वयं जिनमार्ग पर चलने को निकला । शीलंधर आचार्य के पास जाकर.दीक्षा लेली।
अब कांचनपुर में फलसार राजा राज्य करने लगा और शशिलेखा रानी के साथ राज्य सुख भोगने लगा। इन्द्रवत् राज्य पालने लगा। इस प्रकार राज्य करते २ उस राजा फलसार के एक कुमार, शशिलेखा की कुक्षिसे पैदा हुअा योर उसका नाम चन्द्रसार दिया गया।
कुमार भी माता पिता। को सुख देता हुआ आनन्द के साथ बढ़ने लगा । साथियों के साथ कला 4 ग्रहण करने लगा । चन्द्रमा के सहश कुल कुमुद वन को प्रफुल्लित करता हुआयाख्यवस्था छोड़ कर यौवन अवस्था को प्राप्त हुआ।
फलसार राजा अपनी रानी के साथ निर्मल भक्ति सहित श्रीजिनराज के प्रागे फल पूजा सदा करने लगा। अपनी वृद्धावस्था जान कर वैराग्य को प्राप्त हो चन्द्रसार कुमार को राज्य सोंप कर रानी के साथ गृह, से निकल गया। श्री जिनराज मार्ग का आदर करके शुद्ध चारित्र पालन करने लगा। रानी के साथ उग्र तपस्या । करके निर्मल अध्यवसाय और शुद्ध मन परिणाम से आराधना युक्त समाधि मरण प्राप्त करके उत्तम कल्प देव
حيل للملك
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