Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 132
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org लोक में देवता की पदवी को प्राप्त हुआ। वहां अपने मित्र दुर्गत देवता और स्त्री के साथ देवलोक के उत्तम सुख भोगने लगा । इस भय से सातवें भाव में सिद्धि को प्राप्त होगा । हे भव्य जनों ! जो धीर प्राणी इस संसार में हैं उनके उपकारार्थ यह फल पूजा की महिमा कही है। कई उपसर्गों का मिटाने वाला, सब सुख का दाता, मनुष्यों के उपकार के लिये संक्षेप से यह महात्म्य कहा है । भव्य प्राणियों के वर्णन करने योग्य, भवभ्रमण दुःखों को दूर करने वाली इस फलपूजा को श्रद्धा और भक्ति सहित करना उचित है । इति श्री जिनेन्द्र पूजा के फलपूजोधम विषये दुर्गतानारी-शुक मिथुन- कथानकं सप्तम् समाप्तम् । ---- Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अधुना जल पूजामष्टमी माह | गाथा--ढोवइ जो जल भरियं, कलर्स भत्तीये बीयरागाणम् ॥ सो पावइ काल्लणं. जह पत्तं विप्पधूआए ॥ ९ ॥ For Private And Personal Use Only

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