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Acharya Sh Kailassagar Gyanmandi
श्री अष्टक प्रकार
पूजा । ॥ १०॥
علي يحللحد
संस्कृतच्छाया--ढोकते यो जलभृतं, कलशं भत्तयावीतरागाणम् ॥
स प्राप्नोति कल्याणं, यथा प्राप्त विप्र कन्यया ॥१॥ व्याख्या-जो भव्य प्राणी श्री वीतराग स्वामी के आगे जल से भरा हुआ कलश अपर्ण करता है वह ब्राह्मण की पुत्री के समान कल्याण पाता है।
इस भरत क्षेत्र में प्रसिद्ध सुरपुर सदृश ब्रहपुर नाम का सुन्दर नगर है । वहां हजारों ब्राह्मण रहते थे, उनमें एक चार वेद वेत्ता, सोमिल नामक ब्राह्मण रहता था। उसकी सोमा नामक स्त्री थी, उसका पुत्र यज्ञ केतु नामक था। निर्मलावंश में उत्पन्न हुई सदा धर्म में उद्यम करने वाली सोमश्री नामक उसकी स्त्री थी। वह श्वशुरादिकों में अत्यन्त विनीत थी, सब परिवार के साथ सुखसे रहती थी। इस प्रकार रहते २ वहुत समय व्यतीत होगया।
एक दिन सोमिल विधि के वश रोग से मरण को प्राप्त हा । पुत्रने मत कार्य परम्भ किया, सोमा अपनी सोमश्री प्रादि पुत्र बधुओं को कहती है-हे बघुयो! जलांजलि के लिये जल से भरे घड़े लामो और
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॥ ६ ॥
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