Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 136
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir वह कुम्हार बोला हे यहिन ! यह घड़ा ले और अपना कार्य कर, मुझसे बहिन के हाथ का कंकण । कैसे लिया जाय? यह कह कर उसको घड़ा देदिया। सोमश्री ने सुन्दर घट लेकर पवित्र निर्मल जल से भर सासू को लाकर देदिया। सालू ने जलसे भरा हुमा घड़ा देखा, प्रसन्न हुई लेकर आनन्द को प्राप्त हई, उसको पड़ा पश्चाताप हुा । पर उसने अन्तराय कर्म बांध लिये. वे कर्म उसका भव २ में कभी नहीं छोड़ते हैं, अत्यन्त कष्ट देते हैं। कुम्हार ने शुभ कर्म उपार्जन किये, जिससे अन्त में अच्छे भावों से मर कर कुभषु नामक नगर में श्रीधर नामक राजा हुश्रा। वहां उसने राजलक्ष्मी पाई और उसकी एक श्रीदेवो नामक रानी थो, उससे अनेक सुख त. भोगता था। उसको पुण्य के प्रभाव से मांडलिक राजा प्रणाम करते थे और आज्ञा मानते थे । उमकी ऐसी महिमा थी कि सब छोटे राजा उसके चरण कमल में अपना शिरो मुकुट रखते थे और यह राज्य सुख भोगता था। इसो अवसर में वह सोमश्री ब्रामणी शुभ ध्यान से भर कर उसी राजा के श्रीदेवी नामक रानी के | गर्भ से कन्या उत्पन्न हुई। राजा ने बड़ा मानन्द किया, शुभ ग्रहों के योग से यह सबको प्रिय लगती थी। माता पिता को अत्यन्त वल्लभा थी। यह सब प्रभाव श्री जिनराज की जल पूजा का था। For Private And Personal use only

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