Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 139
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir प्रकार पूजा पाप कर्म किये हैं ? जिससे मेरी यह दशा हुई । यह सुन कर मुनिराज बोले, हे भत्र! सुन, मैं तेरे पूर्व जन्म के सम्बन्ध कहता है कि किस प्रकार तुमगे अशुभ कर्म उपार्जन किये। हेभद्र ! इस भष में पूर्वभव में तू वहापुर नामक नगर में सोमा नामक प्रात्मणी थी, तेरी पुत्र वधू , 'सोमश्री नामक थी, उसने श्री जिनराज के सामने निर्मल जल पूर्ण कलश का दान दिया था, तुमने सुनकर अत्यन्त को किया और ऐसे कठोर वचन कहे कि तूने जिनके सामने जल का घड़ा क्यों चढ़ा दिया? यह बड़ा अन्तगय कर्म तूने पांधा, इस दोष से तूने यह भारी दुःख पाया । यह सुन बस दुर्गता स्त्रीने बड़ा भारी पश्चा. साप किया, और कहा हे भगवन् ! यह राय कर्म किस उपाय से दूर होगा ? कृपा कर कहिये। तष मुनिराज बोले हे भद्र! ऐसे कर्म पश्चात्ताप से टूट जाते हैं एक भव में बंधे हुए कर्म बाहुत काल तक नहीं रहते । शास्त्र में कहा है, जो जीव शुद्ध भाव से किसे हुए कमों का पश्चाताप कर होना है तो उसके कर्न मृगावतीके समान दूर हो जाते हैं। जैसे मृगावती को अतीचार लगा था, पर चन्दन वाला के कहने से मन में उसने बहुत पश्चाताप किया जिससे तत्काल उसको केवल ज्ञान मास शुका था, इसलिये पश्चाताप के परे फल हैं। यह सुनकर दुर्गता स्त्री ने मुनिराज से हाथ जोड़ कर खड़ी हो पूस हे भगवन वह सोमश्री मरकर FD६३॥ For Private And Personal use only

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