Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 138
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendre www.kobatirtm.org Acharya Sha Kailassaganser Cyanmandir लगा। दूसरे लोगों ने भी भक्ति के साथ नमस्कार किया, भक्ति और श्रद्धा सहित पुत्री ने मन में ब्राह्रादित होकर वन्दना की। सब लोग राजा सहित धर्म सुनने की इच्छा से मुनिराज के पास बैठ गये । इसी अवसर में एक दरिद्र स्त्री आई, जिसके पुराने फटे कपड़े थे और शरीर घल से भरा था, साथ में कई बालकों का परिवार था, उसके गाँ मस्तक में मांस के पिंड समान गढ़, गूमड़ (स्फोटक ) उठे हुए थे। उनके दु:ख से अत्यन्त दुःखित थी । वह श्रा कर गुरु के चरणों के पास बैठ गयी। राजादिकों ने उसको दया दृष्टि से देखा । तब राजाने हाथ जोड़ विनती की हे भगवन् ! यह स्त्री कौन है ? अत्यन्त दुखित क्यों है? मुझे भयंकर शरीर से राक्षसी,मालम होती है। इस प्रकार राजाके वचन सुन मुनिराज बोले-हे राजन् सुनिये, तुम्हारे इसी नगर में दुर्गति नामक गृहस्थ रहता है। ससकी येणुदत्ता नामक यह पुत्री है। बहुत काल पीछे इसी जन्म में इसकी दरिद्र अवस्था हुई, माता पिता ॥ इसको देख कर कर्मयोग से मरण को पास हुए। यह सुन मस्तक कम्पा कर राजा ने आश्चर्य के साथ मन में विचार किया, देखो इस संसार में जीवों के कर्मयोग मे विषम परिणाम होता है। वह दुर्गता स्त्री मुनि के वचन सुन कर गद्गद स्वर से रोती हुई बोली, हे भगवन् ! आप कृपा कर कहिये मैंने पूर्व जन्म में कौन से For Private And Personal Use Only

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