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श्री० भए प्रकार
पूजा ॥५०॥
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सहायता से खड़ा था, उसको देव सहायी समझ कर उसके गले में माला पहिनादी और अपना वर अंगीकार किया। ऐसी अनुचित बात देखकर माता-पिता असंतुष्ट हुए। राजकुमारी के बांधव वजाहत समान दुःखी होकर चिन्तातुर हुए विचारने लगे, देखो इस कुमारी ने मूर्खपन किया, बड़े २ गुणी, शूर, प्रतापी, राजाओं के कुमारों को छोड़कर हीनकुल, गवार, किसान को अंगीकार किया ।
गधे पर
शास्त्र में कहा है कि कौए के गले में मोती नहीं शोभता है, कुप्तके कष्ट में पुष्पों की माला, रेशम की भूल नहीं शोभा पाती। इसी प्रकार यह कन्या हाली के घर पर नहीं शोभा देती है। इस तरह क्षणभर उदास हो राजा शूरसेन आदि सब राजाओं ने परस्पर विचार किया कि इसके हल को तोड़कर हाली को मारकर कन्या लेलेना चाहिये, नहीं तो राजकुल में कलङ्क लग जायगा ।
इतने में एक चण्डसिंह नामक प्रतापी राजा बोला, इस कन्या ने मूर्खपन किया है जो हाली को अंगीकार किया, अब फिर स्वयंवर करवाना चाहिये और जिसको अपनी रुचि से कन्या वरे उसके साथ पाणिग्रहण (विवाह) होना चाहिये । इन वचनों से राजा शूरसेन बहुत व्याकुल हुआ । इस अवसर में अधिष्ठायक देव ने राजा का परिणाम फेर दिया, उसका पिता बोला है राजा लोगो ! इसमें मेरा कुछ दोष नहीं है, इस
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