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नजिकिरका
वह राजा आनन्द को प्राप्त हो विचार करने लगा यह कोई देव मालूम होता है, इस गर्भस्थ पुत्र के । साथ इस देव का पूर्व भव संबंध ज्ञात होता है, ऐसा विचार कर देवनिर्मित फलों से रानी का दोहद पूर्ण किया। D
अब पूर्ण दिन होने पर रानी के पुत्र का जन्म हुआ, पैदा होते ही उस कुमार के सुलक्षण देवकुमार वत् देख कर बधाई देने को राजा के पास सेवक दौड़े । पहिले बधाई वाले को राजा ने सन्तुष्ट होकर इतना * द्रव्य दिया कि उसका दारिद्र चला गया।
दश दिन व्यतीत होने पर राजाने महोत्सव किया, श्री जिन पूजा गुरु पूजा की और अनाथों को इष्ट दान करा कर संतुष्ट किया । शुभ दिन, शुभनक्षत्र, शुभमुहूर्त में सब कुटुम्बियों को बुलाकर बड़े उत्सव के साथ उस कुमार का नाम फलसार दिया। राजकुमार सौभाग्य गुण से शोभित था। जब यौवन अवस्था को प्राप्त हुआ, तब लावण्य और रूप की कान्ति द्विगुण हो गई। कामदेव समान रूपवान् उस राजकुमार को देखकर इन्द्र भी अपने रूपमद को छोड़ता है। कुमार ऐसा ही बलवान् और तेजस्वी देव कुमार सदृश है।
एकदा वही दुर्गत देवता देवलोक से आकर राजकुमार को पिछली रात्रि में इस प्रकार कहने लगा, हे राजकुमार ! मेरे पचन सुनो, जो तुमने पूर्वभव में सुकृत कर्म का आदर किया था, उस कथा को कहता
لحليج للمخللمك
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