________________
Shin Mahavir Jain Aradhana Kendre
www.kobatirtm.org
Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir
البحر الاول
सिंहासनों पर बैठे । राजकुमारी ने सब को देखा परन्तु एक भी पसन्द न हुआ। तब इस राजकुमार ने चित्र पट भेजा । उस राजकुमारी ने शुक युगल का चित्रपट देख कर जातिस्मरण ज्ञान से पूर्व भव के स्नेह वश फलसार राजकुमार के गले में वर माला पहना दी।
राजा ने प्रसन्न होकर शुभ महूर्त में विवाह किया, और एक महल रहने को दिया। वहां यह अनेक हाच, भाव, प्रमोद, हास्य और नाटक विलास करते हुए रहते हैं। कितने ही दिनों के पीछे राजकुमार को अपनी पुत्री के साथ सीख दी। सब नगर के लोगों के देखते २ प्रधान बस्त्र, आभूषण, रत्न, मणि, माणिक्य और दास दासी प्रमुख देकर विदा किया।
राजकुमार भी अपनी स्त्री शशिलेखा के साथ अपने श्वशुर से आज्ञा मांगकर सम्मान पाकर अपने नगर की तरफ चला। वहां पहुँच कर सुख से अपनी स्त्री के साथ अनेक प्रकार के विषय सुख भोगने लगा। मुख में दिन घड़ी के समान, वर्ष दिन के समान बीतते थे। मन में जिस वस्तु को चाहता था उसी को सहज ही पाता था, पूर्व भव में जो श्री वीतराग की फलपूजा की थी, उसके फल स्वरूप महा सुख भोगता था।
कोई समय सौधर्म देवलोक की सभा में इंद्रमहाराज बैठे थे, वहां सब देवताओं का समुदाय बैठा
For Private And Personal use only