Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 123
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir HIT पूजा uyy॥1 में इस दारिद्रय दुःख से पीड़ित हैं. मुझे एक फल भी नहीं मिलता, मैं कैसे पूजा कर सकू? इस प्रकार विचार दुःखित हो मन्दिर के सामने जाकर आम के वृक्ष के नीचे बैठ गई। ऊपर शुकपक्षी आमके पके हुए फल खा रहा था। उसको देख कर दुर्गता ने कहा-हे पक्षीराज ! यदि तू मुझे एक फल देवे तो मेरा मनोरथ सिद्ध हो । सुनकर शुक बोवा-हे भद्रतू फल से क्या करेगी? स्त्री ने कहा-श्री जिनराज की भक्ति से फल पूजा करूंगी। फिर A यह भी कहा कि यदि तुम फल मुझे दोगे तो श्री प्रभु के आगे फल समर्पण करके यह विनती करूंगी कि इसका पुण्य शुक पक्षी और मुझे दोनों को मिले, इस कामना के लिए मैं तुमसे फल-याचना करती हूं। कर्वजनिकलना यह सुन शुक बोला, हे भद्र ! इस फल पूजा से क्या लाभ होता है? तय वह कहने लगी-हे शुक! । जो प्राणी मनुष्य जन्म लेकर श्री जिन भगवान् की भक्ति से फल पूजा करता है उसके सब चिन्तितार्थ सफल होते हैं, ऐसा मैंने पहिले गुरु के मुख से उपदेश सुना था। श्री वीतराग भगवान के भी यही वचन हैं, इसलिये । तुम मुझे फल दो, जिससे मेरी कामना सिद्ध हो । यह वचन सुन शुकी बोली, मैं स्वयम् जाकर श्री जिनराज की फल से पूजा करूंगी, तुमको आम का फल नहीं दूंगी, मैं ही इसका फल पाऊंगी। यह सुन शुक पक्षी ने । एक आम का फल उसको दिया और कहा कि तू अपना मनोरथ सिद्ध कर। वह स्त्री प्रसन्न हुई आम का फल ॥ ५५ ॥ For Private And Personal use only

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