Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 121
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir श्री अटक प्रकार ॥ ५४ هل صحنه حالم كله अधुना सप्तमी फल पूजा माहात्म्यमाह । गाथा = वरतरु फलाइ ढोयइ, भत्तोए जो जिणेन्दचन्दस्त । जम्मन्तरेबि सहला, जायन्ति मणीरहा तस्स ॥१॥ संस्कृतच्छाया = वरतरुफलानि ढोकते, मक्तया यो जिनेन्द्रचन्द्रस्य । जन्मान्तपि सफला, जायन्ते मनोरथा स्तस्य ॥९॥ व्याख्या=जो प्राणी श्री जिनराज के सन्मुख भक्ति और अनुराग के साथ उत्सम वृक्षों के फलों को अर्पण करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं। और दूसरे जन्म में भी सफल (फलदायी) होते हैं। । अथात् फल पूजा करने वाले को सवें फल की प्राप्ति होती है। गाथा = जिनवर फल पूआए, पाविज्जइ परम इडिढ़ संपत्ति। जह कोरमिहुणगेण, दरिद्वनारी सहिअगेण ॥२॥ Fus. جمال الشكل الجد For Private And Personal Use Only

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