Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाता है, ऐसा विचारकर दूसरे दिन जब देव आया तय पूछने लगा। हे देव! तुम कौन हो ? प्रतिदिन सुन्दर वचन से कुछ कहते हो । प्रतिदिन मेरे उपकार की बात कहकर चले जाते हो। मुझे इस बात को सुनने का बड़ा कीतुक है | ऐसे वचन सुन देव बोला, हे पुत्र ! मैं तुम्हारा इस भव का पिता हूँ । मैंने मनुष्यभव में श्री जिनराज की नैबेद्य पूजा की थी, इससे देवलोक में बड़ी ऋद्धि विमान, देवसुख मिला है-सो निरन्तर भोगता हूँ । तुमको संसार के विषयों में मोहित जानकर धर्म का प्रतिबोध देने को आया हूँ, तुम भी मेरी आज्ञा से जिनभाषित धर्म का आदर करो। ऐसा कह कर वह देव अपने लोकमें चला गया, वहां देव सुख भोगने लगा। अन्त में यही हाली का जीव सातवें भव में शाश्वत् सुख मोक्ष को प्राप्त होवेगा । हे भव्य लोगो ! इस प्रकार श्री वीतराग की नैवेद्य पूजा का फल कहा। जीव को इस भव में दुर्लभ मनुष्य सुख मिलता है, अन्त में उत्कृष्ट देव संपत्ति और अलभ्यसुख प्राप्त होता है, तदनन्तर मोक्ष के अनुपम सुखको भोगता है । इति श्री जिनपूजाष्टके नैवेद्यपूजा विषये, पष्ट हालिक पुरुष कथानकं सम्पूर्णम् । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143