Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 112
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थे। जिनके मस्तक पर मुकुट छत्र और पास में हिलते हुए चामरों ने कान्ति को द्विगुण कर दिया था। वे अपने २ राजकुलरूप कमलवन को सूर्य समान विकस्थर करते थे । उनमें राजकुमारी स्वरुचि के अनुसार बर ढूंढ़ने को हंसनी के समान विचरती थी । अब उस राजकुमारी के गमन समय में बहुत से बाजे बाजने लगे । शंख, पटह और झालरादि वाद्यों का शब्द आकाश तक पहुंच गया, बाजे ऐसे मालूम होते थे मानों देवताओं ने ही बजाये हैं। वह हाली भी उस नगरी के पास मनुष्यों की भीड़ और नाटकादि के समारोह और कई प्रकार के बाजों के शब्द सुनकर वहां आया, उसके हाथ में हल की लकड़ी थी, सब समुदाय के साथ खड़ा २ मण्डप और राजकुमारों की शोभा देखता था । अब राजकुमारी बहुतसी सखियों के परिवार के साथ मण्डप की ओर आई, साथ में प्रतिहारी थी वह लेख लिखित के अनुसार प्रत्येक राजकुमारों का वर्णन करने लगी। उनके देश, घोड़ा, रथ, पैदल और ऋद्धि का वर्णन करने लगी । उनके देश, घोड़ा, रथ, पैदल और ऋद्धि का वर्णन कर माता-पिता के नाम बताये, परन्तु राजकुमारी को एक भी पसन्द न आया । उनको छोड़ कर हाली के पास गई, वह अधिष्ठायक देव की For Private And Personal Use Only

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