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कन्या ने अपने मन से ठीक जानकर किया सो ठीक है, मंडप में जो बात की जाती है वह सब को प्रमाण करनी पड़ती है। मुझे तो कन्या का किया हुआ ही ठीक प्रतीत होता है, इस में हर्ट करने की आवश्यकता नहीं, यह काम तो स्नेह और पूर्व लिखित कर्मों के ही सम्बन्ध से हो जाता है।
अब चंडसिंह राजा सब राजाओं से कहने लगा, यह कुमारी का पिता तो डरपोक है इसलिये यह ऐसे वचन कहता है। फिर क्रोधसे बोला-हे राजाओ! तुम मत घबरानो, लड़ाई के लिये तैयार होजाओ, इस भोली कन्या को अलग करदो, सुभट पणो दिखाओ, इस हालीको पकड़ो, इसके हल को तोड़ डालो और जो कोई इसका पक्षले उसको भी मारो। ऐसे उस प्रधान राजाके वचन सुन चारों दिशाओं से राजा लोग शस्त्र लेकर उठे और हाली से कहने लगे, अरे पामर ! मूर्ख ! इस प्रधान सुकुमाल राजकुमारी को कैसे लेजाता है? छोड़ दे।
ऐसे क्रोधके वचन सन देवता सहायवान् हाली बोला-अरे पापी! लंपट लोगो! ऐसे वचन कहते तुमको लज्जा नहीं आती? अथवा तुम्हारी जीभके सौ टुकड़े क्यों नहीं होजाते ? जो तुम परस्त्री पर अभिलाषा करते हो । चत्रियों का यह धर्म नहीं है, क्षत्री ऐसीअयुक्त बातमुहसे कभी नहीं कहते? मैं पामर नहीं हैं, तुम ही
الهليل للحلولد
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