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नैवेद्य अर्पण किये बिना भोजन कैसे करू? ऐसा विचार साहस रख कर, चाहे मरण हो या जीवन रहो ऐसा । पू दृढ़ निश्चय कर अगाड़ी चला। यह जैसे २ अगाड़ी पग रखता था वैसे २ देव ने अपने पैर पछि हटाये, इस * तरह धीरज से मन्दिर में प्रवेश कर श्री जिनराज को प्रणाम कर नैवेद्य उसने रख दिया; इतने में वह सिंह ,
अदृश्य हो गया। हाली भक्ति से भरे हुए अंग से राग के साथ नैवेद्य रखकर नमस्कार कर अपने स्थान श्री
गया, जब वह भोजन करने बैठा, तो वह देव साधु का रूप रखकर उसके पास आया, उसने उसमें से चौथा ५ भाग साधु को दे दिया, साधु भी लेकर चला गया। फिर जब खाने को कवल हाथ में लिया, त्योंही वह देव* फिर साधु का रूप धर सोमने आया, हाली ने फिर अपने शेष भोजन में से फिर दिया एवं फिर भोजन को घेठा, फिर वह देव स्थविर साधु का रूप रखकर पाया, हाली ने अपना शेष समस्त भोजन दे दिया।
इस प्रकार उसकी सत्य परीक्षा कर दृढ़ निश्चय जान कर मूलरूप धर कर देव प्रत्यक्ष प्रकट हुआ और कहने लगा, हे साहस धारी ! सत्यवान् ! पुरुष ! मैं तेरी भक्ति देख कर प्रसन्न हुआ हूँ, तेरा अनुराग श्री वीतराग धर्म पर है इसलिये मन चितिति अथ तू मांग, मैं देने को तैयार हैं। इस तरह देव के वचन सुन कर हाली बोला हे देव! जो तुम मुझ पर संतुष्ट हुए हो तो ऐसा वर दो जिससे मेरा दारिद्र रूप अन्धकार लीन
ليطلعلج للعلاج
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