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श्री. अमको योग्य है। श्रद्धा और भक्ति से यह कार्य करते रहना, जिससे इस लोक में राज्य संपत्ति मिलेगी और " प्रकार
। परभव में शाश्वत सुख मिलेगा। इसमें संदेह नहीं। ऐसा कहकर चारण मुनि आकाश में उड़ गये।
नवीन
हाली भी खड़ा २ऊंचा मुख करके देखता रहा और उसने यन्दना को । मुनिराज अपने इष्ट देश को चले गये। अब वह हाली प्रतिदिन वहां रहता हुआ इस प्रकार करने लगा, जब उसकी स्त्री भ्राता (भोजन)* लेकर श्राती तब उसमें से थोड़ा सा श्री जिनराज के अगाड़ी समर्पण करता, पीछे शेष खुद खाता । इस प्रकार करते २ उसको कितने ही दिन व्यतीत हो गये। एक दिन दोपहर हो गई अत्यन्त भूख लगी, तो भी उसके भाता नहीं आया-बहुत समय बीत गया, यह भूख से व्याकुल होता हुआ अपनी स्त्री की राह देखने लगा। इतने मेंयह स्त्री भाता लेकर आई, जब वह जल्दी से कवल (ग्राम)लेकर अपने मुख में प्रवेश करने लगा, इसको तो उसी समय अपना नियम स्मरण आया, इसने ग्रास को अलग रखा दूसरा अन्न लेकर नैवेद्य अर्पण करने को श्री जिन राज के मन्दिर की तरफ चला।
इस हाली के तत्वकी परीक्षा करने को नगराधिष्टित देवसिंह रूप धरकर मन्दिर के द्वार पर बैठा है। यह देख हाली मन में विचार करने लगा, अब कैसे किया जाय; यदि नहीं जाक तो नियमभङ्ग होता है और
والحل للاد
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