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Acharya Sh Kailag
Gyanmandi
श्री० अष्ट মক্কা * पूजा
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नगर के अधिष्ठायक देव मुनि के उपसर्ग से ऋद्ध होकर नगर के लोगों पर उपसर्ग करने लगा. कई . रोग जैसे मरी. मिर्गी, हैजा इत्यादि प्रवृत्त हो गये, नगरके लोग दुःखी हो गये। राजाने नगर के प्रधान मनुष्यों को बुलाकर कहा-यह कोई देव का उपद्रव है, सो पाराधन करो जिस से शान्ति हो। जब सबने अाराधना की तो त्राधिष्ठायकादेव सतुष्ट होकर बोला हे लोगों ! तुम इस नगरको खाली करदो और दूसरी जगह बसाओ, जिस से तुम्हारे कुशल हो । राजा ने उस देव के वचनानुसार दूसरी जगह पूर्व दिशा में नगर बसाया और उस का नाम क्षेमापुर रक्खा इस से सब उपलव शान्त हुआ।
यहां पुराना नगर शून्य था वहां एक कषभ देव स्वामी का मन्दिर था । वहाँ उस देव ने सिंह का रूप धारण कर निवास किया, पापी, दुष्ठ पुरुष को मन्दिर में नहीं आने देता।
एक युवा पुरुष हाली (किसान) उस नगर का वासी दारिद्रय से दुःखी हो खेती का काम करता था, वह खेत मन्दिर के सामने था, प्रतिदिन हल चलाया करता था। उसकी स्त्री दुपहरी में अरस, विरस अन्न लेकर
आती थी, वह जैसे तैसे खाकर अपना गुजारा करता था। आहार में घी, तेल की तो पास तक नहीं थी। इस प्रकार पड़े.कष्ट से दिन पिताता था।
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