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श्री अट प्रकार
पूजा ४३
चावनिकलिन
संस्कृतच्छाया - ढोकते यो नैवेद्य, जिनपुरतो भक्ति निर्भरगुणः ।
सनर सुर शिव सौख्यं, लभते नरो हालिक सुरइव ॥२॥ व्याख्या =जो प्राणी इस मनुष्य भव को पाकर श्री जिनराज के आगे अत्यन्त भक्ति के गुणों से नैवेद्य रखता
है वह प्राणी मनुष्यसुख और देवसुख पाकर अन्त में हाली अधिष्ठित देवता के जैसे निर्वाण सुख पाता है।
अथ हालिक कथा। .इसी जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में क्षमा नामक प्रधान नगरी है, वह सुरपुरी के समान शोभायमान * है और अनेक मन्दिर, प्रासादों से देवमन्दिरवत् शोभायमान है। वह नगरी सूर्य समान तेजोवती है जैसे सूर्य
के उदय होने से अन्धकार नष्ट हो जाता है, इसी प्रकार अपने तेज से शत्रुओं को नष्ट कर देती है। वहां प्रतापी, तेजस्वी, राजशिरोमणि, शूरसेन नामक राजा राज्य करता था। उस देश के पास ही एक धन्ना नामक पुरानी नगरी थी। वह भोइसी राजा के वशीभूत थी। जिसको इसके पुरुखाओं ने बसाई है वहां एक छोटा राजा, सिंहध्वज नामक रहता था, वह बड़े धैर्य और शूरता से राज्य पालता था।
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