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अधुना पष्ठी नैवेद्यपूजामाह ।
गाथा = ढोअइ बहुभति जुओ, नेवज्जं, जो जिनेन्द चन्दाणम् । भुंजइ सो वरभोए, देवासुर मणुअनाहाणम् ॥ १ ॥ संस्कृतच्छाया = ढौकते बहुभक्तियुतो, नैवेद्य यो जिनेन्द्र चन्द्रार्णा । भुङ्क्ते स वरभोगान्, देवासुर मनुजनाथानाम् ॥१॥
व्याख्या = जो प्राणी बहुत भक्ति और अनुराग के साथ श्री वीतराग जिनेन्द्र भगवान् के आगे नैवेद्य अर्पण कर ता है वह मनुष्य संबन्धी, व्यवहारी, सेठ, सेनापति, मन्त्रीश्वर, मण्डलीक, राज्य का सुख भोगकर फिर देवता संबंधी सुख पाता है ।
गाथा = ढोवइ जो नेवज्जं, जिणपुर ओ भत्ति निष्भर गुणेणं ।
सो नर सुर शिव सुक्खं, लहइ नरो हालिय सुरो ॥२॥
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