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Acharya Sh Kailassagar Gyanmandi
| कमाला हुई, तुझको प्रतिबोध देने के लिये वह जिनमती देवी प्रतिदिन आकर उपदेश कहती है वह भी च्युत
होकर यहां तेरी ही सखी होगी इस भव में तुम दोनों तप, शील, संयम का आदर कर सर्वार्थसिद्ध देवलोक में । | देवता होोगी। फिर तुम दोनों सवार्थसिद्ध विमान से च्युत होकर यहां मनुष्यावतार ले अत्यन्त सुख भोग
कर अन्त में चरित्र ग्रहण कर कर्म का क्षय करके उत्कृष्ट गति सिद्धि के शाश्वत सुख पाओगी। जो तुमने श्री। जिनेन्द्र भगवान् की दीप पूजा की है इस प्रभाव से मनुष्य सुख, देव सुख और अन्त में निर्वाण सुख पाओगी इसमें लेश मात्र भी सन्देह नहीं है।
ऐसे आचार्य के वचन सुनते ही उस रानी को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, उसने अपने पूर्वभव * * का सम्बन्ध जाना, जान कर कहने लगी, हे भगवन जैसा आपने मेरा पूर्वभव का चरित्र कहा वह वैसे ही मैंने जातिस्मरण ज्ञान से जान लिया। यह कह कर श्रीजिन धर्म का आदर किया और भक्ति और विनय से धारण किया।
सभा का अवसर जान कर राजा रानी दोनों उठे और अपने घर गये। रात्रि के समय फिर वही जिनमती देवी आई और कहने लगी, हे भद्र ! तुमने अच्छा किया जो जिनधर्म को अङ्गीकार किया। अब मैं भी देवलोक से च्युत होकर इसी नगर में सागरदत्त नामक सार्थवाह के पुत्री होऊंगी तुम मुझे प्रतिबोध देना, यह मैं अपना रहस्य तुम को कहती हैं, ऐसा कह कर वह देवी अपने स्थान चली गई और शेष देवसुख भोगने लगी।
حلاليلي حللحداد
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