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Shin Maalain Aradhana Kondre
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*कर लिया। फिर वार २क्रोधरूप अग्नि से जलता हुआ उठा और भयानक शब्द करने लगा। उसकी शक्ति मन्द ।। * हो गई। यह कठिन उपसर्ग राजा रानी को हुआ तो भी वे दोनों चित्स में चोभ को धारण नहीं करने लगे और ग
उठकर देखें तो रानी के तेज के सामने सुब्द चित्त हुआ पड़ा है। इस अवसर में सस राक्षसी में शोध कर अनेक उपद्रव किये परन्तु कनकमाजा सत्य से चलायमान नहीं हुई।
उसके बाद रानी का साहस देख सन्तुष्ट हुई राक्षसी ने अपना मूलरूप धारण किया और बोली ' है। वत्स ! मैं तेरे पर प्रसन्न हुई हूँ, तू इष्ट बरदान मांग, में देती हूँ" ऐसे राक्षसी के वचन सुन रानी कनकमालापोली हे भगवती ! यदि तू मेरे ऊपर प्रसन्न हुई है तो एक धर्म कार्य कर, रत्नजदित स्वर्णमय श्री धीतराग का मन्दिर बना । यह वचन अंगीकार कर भय प्राप्त राक्षसी अपने स्थान गई।
जय रात्रि व्यतीत हुई, दुष्कर समय भी व्यतीत हुश्रा, प्रातः काल राजा रानी सुख शय्या में जाग गये, अपने महल झरोके से देखा तो क्षण भर में रात्रि के समय देवमन्दिर समान उस राक्षसी ने एक स्वर्णमय जिनमासाद बनाया है नगर के लोग उठे और देख कर कहने लगे कि यह भवन कनकमाला रानी ने अपने पूजा के लिए बनवाया है। ठीक राजभवन के झरोखे के सामने श्री वीतराग भगवान की प्रतिमा है सो बैठी हुई प्रति दिन दर्शन करती है। रात्रिहोते ही अपने रतिषिलास में लग जाती है,इस प्रकार करतेर उसका समय व्यतीत होताथा।
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