Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 99
________________ San Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir भी० अष्ट अब वह धनश्री अपने देव पायु को पूरा कर च्युत होकर मेघपुर नगर में राजा मकरध्वज राज्य प्रकार करता था उसके पटरानी कनकमाला नामकी हुई, वह पृथ्वीभर की स्त्रियों में तिलक समान रूपवती थी दूसरी पूजा 0 ४॥ स्त्री कोई उसके समान नहीं थी। राजा के वह रानी अपने प्राण से भी प्रिय थी। इस राजा के एक रनी दमितारी मामकी थी परन्तु वह रोग से पीडित हो परभव के दोष से मरकर राक्षसी हुई। यह राजा कनकमाला के साथ विषय सुख भोगता था, दोगुन्दक देवता के जैसे रात्रि दिन जाते हुए मालूम नहीं होते थे। जहां रानी का वासघर था वहां रात्रि के समय भी सूर्य समान प्रकाश रहता था, क्योंकि । । रानी के शरीर को कान्ति देदीप्यमान रहती थी। एकदा रानी के साथ विषयसुख में आसक्त राजा को देखकर वह राक्षसी कुपित हुई अर्धरात्रि के प्र समय रानी के वासगृह में प्रवेश करने लगी परन्तु सूर्य समान रानी के तेज से मन्द होती हुई, ऋद्ध होकर रजा के पास आई, राजा ने बड़ी डाई, दांत वाली भयानक मुखी, विकराल नेत्रा, उस राक्षसी को देखो। देखते ही उसने वैक्रिय रूप से सर्प का रूप बनाया और राजा के ऊपर उपद्रव करने को उद्यत हुना, परन्तु रानी के तेज से निश्चेष्ट होकर पृथ्वी पर पड़ गया। उस सर्प का यल नहीं चला। अपनी अखि मीचली, शरीर संकुचित desejadase For Private And Personal Use Only

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