Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 98
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir विस्मित हुई, उन्होंने विचार किया कि अपन दोनों ने कौन से सुकृत से ऐसी अनुपम ऋद्धि पाई ? उपयोग । देकर अवधिज्ञान से जाना कि पूर्वभव में श्री जिनराज के सामने दीपदान किया था उसका यह फल मिला है। और यहां इच्छित देवसुख भोगती हैं। इस तरह विचार कर यहां पृथ्वी पर मेघपुर नगर के पास श्री ऋषभ- । देव स्वामी का प्रधान, रमणीय मन्दिर था, वहां आई और आकर हृदय में प्रसन्न हुई और उस मन्दिर की उन्होंने अद्भुत रचना की, उसको नीचे दिखाते हैं। मन्दिर रचना वर्णन। स्फटिक रन के पत्थर की शिलाएं बाहर भीतर लगी हैं, स्वर्णमय स्तंभ, जिनमें मणि और रत्न जड़े 5 हैं। ऊपर नवीन सुवर्णमय ध्वजाओं से शोभायमान था, अग्नि में तपाये हुए कनकमय दण्ड उनमें लगे थे। ध्वजाओं के ऊपर पुष्प मालाएं विराजमान थी, कलशों के ऊपर रमणीय रन प्रदीप देदीप्यमान थे, जिन भवन । ऊपर सुगन्धित पंचवर्ण पुष्पों की वर्षा और सुवासित जलवृष्टि होती थी। जिससे उसकी महिमा अवर्णनीय थी। उन दोनों देवियोंने श्रीऋषभदेव स्वामी के मंदिर के चारों तरफ तीन प्रदक्षिणा दीनी,भीतर बन्दन कर स्तुति करना । प्रारंभ किया। फिर वोर २ श्री जिनराज को प्रणामकर भक्ति से हृदय में हर्षे धारण करने लगीं। अन्त में बहुत महिमा कर अपने देवलोक में गई। वहां रहती हुई वे दोनों देव सुख यथेच्छ भोगती हैं। For Private And Personal Use Only

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