________________
Shin Mahavir Jain Aradhana Kendre
www.kobatirth.org
Acharya Sh Kailassagar Gyanmandi
श्री०ए। प्रकार
पूजा
॥
به محل حوصللي
अधुना पञ्चम पूजा प्रदीपमाहात्म्यमाह । गाथा = जिण भवणंमि पईबो, दिन्नो भावेण लहइकल्लाणं ।
जह जिणमइ पइपत्त, धणसिरि-सहियाई देवत्तं ॥१॥ संस्कृतच्छाया = जिनभवने प्रदोपः, दत्तोमावेन लभते कल्याणं ।
यथा जिनमतिः प्राप्ति प्राप्ता, धन श्री सहितं देवत्वम् ॥ व्याख्या = जो मनुष्य श्री जिनराज के मन्दिर में भक्ति से दीपक पूजा करता है वह निर्मल ज्ञान, सम्पत्ति
लक्ष्मी और देवतापन जिनमती के जैसे पाता है और उसको भव २ में मंगल की वृद्धि, देवमुख और मनुष्य सुख भी प्राप्त होते हैं।
अत्र कथा। इसी भरतक्षेत्र में शोभायुक्त, पृथ्वी मण्डल में प्रसिद्ध मेघपुर नामक नगर है, वहां अनेक प्रकार tin के महल, मालिया, गवाक्ष आदि होने से स्वर्ग के सदृश्य ज्ञात होता है । उस नगर में नरनाथ मेघ नामक ।
For Private And Personal Use Only